विकास केवल भारत का ही नहीं हुआ है किन्तु यह प्रक्रिया विश्व स्तर पर हुई है. विकास एक सापेक्ष परिमाप है, तदनुसार यदि एक समाज दूसरे समाज से अधिक विकास करता है तो दूसरे समाज का पिछड़ना कहा जाएगा. इस दृष्टि से भारत विकास की दर में अनेक देशों से पिछड़ा है. अतः भारत का विकास या यहाँ के लोगों के जीवन स्तर में सुधार कोई अर्थ नहीं रखता. इसे एक प्राकृत प्रक्रिया के अंतर्गत स्वीकार लिया जाता है और इसका श्रेय किसी शाशन को नहीं दिया जा सकता. यहाँ तक की यह भी कहा जा सकता है की भारत के विकास की दर अपेक्षाकृत कम रही है जिसके लिए शाशन उत्तरदायी है.
वास्तविक विकास देश के सकल घरेलु उत्पाद से नहीं मापा जा सकता. इसकी सही परिमाप देश के निर्धनतम व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार से किया जाना चाहिए. आज भी भारत का निर्धनतम व्यक्ति लगभग उसी स्तर पर जीवन यापन कर रहा है जिस पर वह अंग्रेजी राज में करता था. अतः उसके लिए देश की स्वतंत्रता तथा इसके सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि कोई अर्थ नहीं रखती. इस दृष्टि से स्वतंत्र भारत के शाषन को असफल ही कहा जायेगा.
अंग्रेजी शाशन में देश की सम्पदा तथा लोगों का शाशकों द्वारा भरपूर शोषण किया जाता था. स्वतंत्रता के बाद इस शोषण में जो परिवर्तन आया है उसका प्रभाव केवल शाषक वर्ग पर पड़ा है जिसमे राजनेता तथा राज्यकर्मी सम्मिलित हैं. जनसाधारण तथा व्यवसायी वर्ग का शोषण उतना ही हो रहा है जितना अंग्रेजी राज में होता था. अतः इन वर्गों को शाषन परिवर्तन का कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है. इस कारन से शाषन के प्रति इनकी भावना आज भी वैसी ही है जैसी अंग्रेजी शाषन के प्रति थी.
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स्वतंत्र भारत का शाषक वर्ग न तो किसी के प्रति निष्ठावान है और न ही अनुशाषित. छल-कपट और भ्रष्टाचार उनकी रग-रग में बसा है. इसका प्रभाव व्यापक रूप से जनमानस पर पड़ा है. आज जनमानस भी अपने नेताओं से प्रेरणा पाता हुआ भृष्ट और बेईमान हो गया है. सार्वजनिक सम्पदा कि चोरी आम बात हो गयी है जिसका कोई प्रतिकार शाशको के पास नहीं है क्योंकि वे सब भी यही कर रहे हैं. सामाजिक अपराधों में वृद्धि हुई है जिससे जनसाधारण असुरक्षित हो गया है. न्याय व्यवस्था चरमरा गयी है तथा अपराधी वर्ग ने राजनैतिक सत्ता हथिया ली है जिससे जनसाधारण असुरक्षा कि भावना से पीड़ित है. जनमानस में इस परिवर्तन के कारण ही अंग्रेजी राज को भारतीय राज से अच्छा कहा जाने लगा है.
दो हज़ार साल से ज्यादा गुलाम रहने के कारण भारतीयों के जींस में में ही गुलामी आ चुकी है, हर किसी को अपना रहनुमा मान लेते हैं पर खुद कभी कुछ करने और सुधरने की हिम्मत नहीं दिखाते.
जवाब देंहटाएंआप ने बिल्कुल दुरूस्त बात की है। वो अम्ग्रेज ही थे जिन्होनें ने हमे एक शासन प्रणाली, कानून प्रणाली, अस्पताल, स्कूल, शिक्षा न जाने क्या क्या दे गये और हम अभी भी लकीर के फ़कीर भी नही बन पाये, कम से कम उस बेहतर रास्ते पर ही चलते जो हमे मिला था। निक्कमी कौम हैं हम। हज़ारो किलोमीटर अपने घरों से दूर अग्रेज कौम को देखिये जिसने भारत के भयानक जंगलों में भी रेल लाइन विछा दी और हम रिहायसी इलाको में सड़क भी नही बना पाते।
जवाब देंहटाएंहम तो इतने काहिल निकले की अंग्रेजों के सडियल कानून भी नहीं बदल सके ya बदलना नहीं चाहते .
जवाब देंहटाएंपोस्ट की फॉण्ट साइज़ थोडा बढा लीजिये
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जवाब देंहटाएंअच्छे विचार
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
जवाब देंहटाएंआपसी समझ कम से कम किससे कैसे पेश आए इसमे सक्षम कर देती है | किससे दूरी रखनी है वो जानना भी तो जरूरी है |
जवाब देंहटाएंअपने या फिर गैर किसी तीसरे शव्द मे मुझे विश्वास नहीं |
धन्यवाद blog visit के लिए इसी से मेरा भी एक और बुद्धजीवी से परिचय हुआ और आपके blog के बारे मे पता चला |
Shashak warg hamare hee samaj kee den..hame khud apne girebaan me jhankna chahiye ki, hamare sanskar kahan chook gaye...
जवाब देंहटाएंKshama ke saath sahmat hun!
जवाब देंहटाएंwelcome to blogging
जवाब देंहटाएंक्षमा और शमा जी
जवाब देंहटाएंदोष वोटर जनता का नहीं है, शाहाक वर्ग ने उनकी परिस्थितियाँ ही ऐसी बना दिन हैं की उन्हे लालच में वोट देना पड़ता है. इसके लिए जनतांत्रिक शासन प्रणाली भी दोषी है जो ऐसे समाज पर थोपी गयी जो इसके योग्य नहीं है.
राम बन्सल जी,प्रणालियां निर्जीव चीज़ें हैं वे कैसे अच्छी-बुरी होसकतीं हैं, अच्छा -बुरा आदमी ही होता है, जो लालच करे वह ही बुरा है। आप क्यों लालच करते हो? वाह! क्या बात है हम तो लालच करेंगे आप अच्छे बने रहो , शाबाश!!
जवाब देंहटाएंअब-इन्कन्वेन््टी जी व महेश जी, बहुत सही कहा यही तो बात है, तभी तो आज भी मिस्राजी जैसे लोग अन्ग्रेजों की बढाई मे लगे है। ये सारी चीज़ें अन्ग्रेज़ों ने नहीं समय ने बनाई हैं, नहीं तो आज अन्ग्रेज़ अमेरिका से पीछे कैसे रह जाते?
"पहिले का जमाना कितना अच्छा था?" यह जुमला हर युग का इन्सान कहता चला आ रहा है। त्रेता और द्वापर के उपदेशक भी कहते थे "घोर अधर्म,पापाचार का समय आ गया है" कहने मतलब ये कि वर्तमान को कोइ अच्छा नहीं कहता। लोग अंग्रेजों के राज को भी इसी मानसिकता के चलते आज के जमाने से अच्छा कहते हैं ।
जवाब देंहटाएंभूल कर रहे हैं डॉक्टर दयाराम, तुलना अँग्रेज़ी और देसी राज की नहीं की गयी है अपितु लोगों की मानसिकता की की गयी है. जब नैतिक ह्रास सतत हो तो विवशता हो जाती है कि पिछ्ले जमाने को अच्च्छा कहा जाए.
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