अधिकाँश व्यक्ति त्रुटि करके उस पर पाश्चाताप करते हैं, और उससे हुई हानि का आकलन करके उन्हें छिपाने के प्रयास करते हैं और अपने अन्दर हीनता का भाव विकसित करते हैं. इससे उनकी उत्पादकता कुप्रभावित होती है. अंततः यह हीनभाव बहुत हानिकर सिद्ध होता है.
अपनी त्रुटि को स्वीकार कर लेने से उनके भविष्य में दोहराया जाना प्रतिबंधित होता है, इसलिए स्वीकार करके आगे बढ़ते जाना बहुत लाभकर सिद्ध होता है. इसलिए पूरी पारदर्शिता के साथ अपनी त्रुटि स्वीकार करते हुए उससे आहत हुए व्यक्तियों से क्षमा मांगिये. इससे त्रुटि को सुधारते हुए आगे बढ़ने और भविष्य की गतिविधियों पर केन्द्रित होने में सहायता मिलती है और अन्य लोगों का भरपूर सहयोग प्राप्त होता है.
व्यक्ति द्वारा अपनी त्रुटि दूसरों द्वारा उंगली उठाने से पूर्व ही पाकर स्वीकार कर लिया जाना चाहिए इससे किसी को दोषारोपण का अवसर नहीं मिलता. त्रुटि को स्वीकारने के बाद उसके कारणों का विश्लेषण कीजिये और सम्बंधित लोगों को स्पष्ट कीजिये कि वह त्रुटि आपसे क्यों हुई थी, और इससे क्या शिक्षा मिलती है. त्रुटि में किसी एक व्यक्ति की भूमिका पूरी अथवा आंशिक हो सकती है. साथ ही त्रुटि के कारण सम्बद्ध व्यक्ति के नियंत्रण के बाहर भी हो सकते हैं. इससे सभी द्वारा त्रुटि को नए दृष्टिकोण से देखना संभव होता है. इस प्रकार त्रुटि को एक भार से एक संपदा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है.
त्रुटि होने पर वांछित परिणाम पाना संभावित होता है किन्तु ऐसा सुनिश्चित नहीं होता. साथ ही वांछित परिणाम न प्राप्त होना त्रुटि होने का सुनिश्चित संकेत नहीं होता. इसलिए त्रुटि को परिणाम के सापेक्ष न देखकर उसका परिणाम-निरपेक्ष विश्लेषण किया जाना चाहिए.
त्रुटि का मूल्यांकन
त्रुटि से कुछ हानियाँ होती हैं, साथ ही उससे कुछ शिक्षाएं भी मिलती हैं. अतः वे त्रुटियाँ लाभदायक होती हैं जिनसे हानियाँ अल्प तथा शिक्षाएं मूल्यवान प्राप्त हुई हों. इससे यह भी सिद्ध होता है कि सभी त्रुटियाँ अपने सकल प्रभाव में हानिकर नहीं होतीं. सगठनों की कार्य-संस्कृति ऐसी होनी चाहिए जिससे त्रुटियों को मात्र आर्थिक परिणाम के सापेक्ष न देखा जाकर उनके सकल प्रभाव के रूप में देखा जाना चाहिए. अतः संगठन के दृष्टिकोण में त्रुटियाँ शिक्षण और अनुभव के माध्यम होनी चाहिए न कि दंड देने के कारण.
किसी व्यक्ति से त्रुटि होने का मुख्य कारण यह होता है कि व्यक्ति सक्रिय है और प्रयोगधर्मी है. ये दोनों ही सकारात्मक गुण हैं और बनाये रखने चाहिए, त्रुटियाँ होने पर भी. यदि त्रुटियों का सदुपयोग किया जाता रहे तो वे क्रमशः कम होती जाती हैं और व्यक्ति को उत्कृष्टता की ओर ले जाती हैं. अतः त्रुटियाँ असक्षमता और निर्बलता का प्रतीक नहीं होतीं किन्तु व्यक्ति के साहसी प्रयोगधर्मी होने का संकेत देती हैं यदि व्यक्ति इनसे निराश न होकर इनसे सीखने के लिए लालायित रहता है.
सभी त्रुटियों के प्रभाव एक समान नहीं होते. कुछ व्यक्तिगत त्रुटियाँ दूसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. यदि ऐसा है तो उस व्यक्ति से क्षमा याचना करते हुए उस त्रुटि के कारण स्पष्ट कर देने चाहिए. सामूहिक त्रुटियाँ प्रायः क्षम्य होती हैं क्योंकि उनके प्रभाव वितरित हो जाते हैं.
त्रुटियों के बारे में क्या करें -
- त्रुटि में अपनी भूमिका को तुरंत स्वीकारें.
- सिद्ध करें कि त्रुटि से आपने कुछ शिक्षा प्राप्त की है और भविष्य में ऐसा नहीं होगा.
- सम्बंधित लोगों को विश्वास दिलाएं कि आप की सामर्थ पर विश्वास किया जा सकता है.
क्या न करें -
- त्रुटि से बचने का बहाना न खोजें और इसके लिए किसी अन्य पर दायित्व न डालें.
- ऐसी त्रुटियों के करने से बचें जिनसे आप पर दूसरों का विश्वास विखंडित होता हो.
- त्रुटि होने पर अपनी प्रयोगधर्मिता न त्यागें किन्तु इसे और अधिक उत्साह और त्रुतिहीनता के साथ करें.
- कुछ ऐसे निर्णय होते हैं जिनकी वापिसी असंभव होती है. ऐसे निर्णय में त्रुटि होने पर उसका निराकरण भी असंभव होता है. अतः ऐसे निर्णय लेने में बहुत सोच-विचार कर ही लें जिसमें कुछ समय लगायें. ध्यान रखें कि इस में किसी त्रुटि की संभावना तो नहीं है.
- अनेक बार हमारी त्रुटियाँ हमें नए मार्ग भी दर्शाती हैं. अनेक वैज्ञानिक खोजें त्रुटियों के कारण हुई हैं. अतः प्रयोगधर्मी बने रहिये, त्रुटि होने की आशंका मत घबराइए.
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