अभी हुए पंचायत चुनावों में मतदाताओं ने विरोधी की ओर से वितरित शराब, नकद धन और अन्य लालचों में आकर मेरे द्वारा समर्थित प्रत्याशी को धोखे दिए जिसे मैं अपने साथ और अपनी नैतिकता के साथ धोखा मानता हूँ. यहाँ तक कि विजित प्रत्याशी ने एक विपक्षी प्रत्याशी और उसके सहयोगियों को भी ८५,००० रुपये देकस्र खरीद लिया था. चुनाव से पूर्व चुनाव मैदान में अन्य २ प्रत्याशियों ने भी मुझे कोई महत्व नहीं दिया जिसके कारण मेरी और उनकी पराजय हुई. इस चुनाव में विजित प्रत्याशी को लगभग कुल १५०० पड़े मतों में से केवल ४२८ मत प्राप्त हुए जो लगभग ३० प्रतिशत से भी कम हैं. अब उसके समर्थक दूसरे प्रत्याशी को केवल १४ प्रतिशत मत प्राप्त हुए. इससे इन दोनों का समर्थन केवल ४४ प्रतिशत है, जब कि शेष गाँव - ५६ प्रतिशत - विजित प्रत्याशी का घोर विरोधी है और चुनाव परिणामों से बहुत अधिक निराश और दुखी है. दुःख इसलिए भी अधिक है क्यों कि विजित व्यक्ति ने विजय के तुरंत बाद से ही अपनी स्वाभाविक उद्दंडता आरम्भ कर दी है जब कि उसे अभी प्रधान पद का कार्यभार भी प्राप्त नहीं हुआ है. इससे गाँव में तनाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है जिसमें एक ओर ४४ प्रतिशत और दूसरी ओर शेष ५६ प्रतिशत व्यक्ति रहने की संभावना है.
उक्त धोखे के कारण मेरा मन बना कि आगे से मैं ऐसे धोखेबाज मतदाताओं पर निर्भर नहीं करूंगा क्योंकि इन पर मेरा विश्वास उठ गया है. अब मेरा मन बना था कि मैं गाँव की राजनीति में भाग न लेकर अपने लेखन और अन्य रचनात्मक कार्य पर ध्यान दूंगा. किन्तु चुनाव परिणामों से उत्पन्न संघर्ष की आशंका के कारण ग्रामवासियों की दृष्टि में मैं ही उनका सच्चा हितैषी हो सकता हूँ और वे मुझसे विपक्ष का नेतृत्व करने की मांग कर रहे हैं ताकि उनके हित सुरक्षित रह सकें. गाँव में मेरे परिवार का इतिहास ग्राम के विकास और ग्रामवासियों की सेवा हेतु संघर्ष करने का रहा है, और गाँव में मेरे दस वर्षों में मेरी जो छबि बनी है वह भी मेरे पारिवारिक इतिहास से भिन्न नहीं रही है. आने परिवार की परंपरा के कारण मैं ग्रामवासियों का आग्रह अस्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ. इससे सत्ता पक्ष में हलचल हुई है जिसमें अधिकांशतः असामाजिक तत्व हैं जिनके साथ सहयोग किये जाने की भी कोई संभावना नहीं है.. मैं यह भी समझता हूँ की आगामी संघर्ष में मैं ही असामाजिक तत्वों का प्रमुख विरोधी रहूँगा और अधिकाँश ग्रामवासी केवल तमाशा ही देखेंगे. इसका सकारात्मक पक्ष यह होगा कि सार्वजनिक धन का दुरूपयोग नहीं हो सकेगा और गाँव में कुछ विकास कार्य भी होंगे. इन्हीं कारणों से मैं असहमत भी नहीं हो पा रहा हूँ. मेरे पक्षधरों को मुझसे कोई निराशा हो यह भी मैं नहीं चाहता हूँ.
इस चुनाव में विजित प्रत्याशी ने सर्वाधिक लगभग ३ लाख रुपये व्यय किये जिसके लिए वह ऋण के भार से दबा हुआ है. मेरे प्रत्याशी के लगभग १ लाख रुपये काम आये जो उसके परिवार की आय से ही थे. अब मेरे समर्थक दो अन्य प्रत्याशियों के भी २-२.५ लाख रुपये व्यय हुए. विजयी प्रत्याशी को ग्राम के विकास हेतु प्राप्त धन का अपव्यय करते हुए अपना ऋण चुकता करना है जिसके लिए उसे सार्वजनिक धन में से लगबग ६ लाख रुपये की आर्थिक अनियमितता करनी होगी. इसके अतिरिक्त वह कुछ धन भविष्य के लिए भी अर्जित करना चाहेगा. इस प्रकार वह आगामी ५ वर्षों में न्यूनतम १० लाख रुपये की आर्थिक अनियमितता करेगा. इसे रोकने का दायित्व ग्रामवासी मुझे देना चाहते हैं. सार्वजनिक हित में मैं इसे अस्वीकार भी नहीं कर पा रहा हूँ.
अतः संघर्ष अवश्यम्भावी है जिसका प्रथम चरण ग्राम पंचायत के शेष सात सदस्यों का चुनाव है जो नवम्बर माह में ही संपन्न होने की आशा है. जब तक ये चुनाव नहीं होते हैं तब तक प्रधान पद के लिए चयनित व्यक्ति को पद का कार्यभार भी प्राप्त नहीं हो सकेगा.
सबसे पहले आप सभी को खासकर इमानदार इंसान बनने के लिए संघर्षरत लोगों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंअब आपके पोस्ट की बात प्रहलाद अकेला ही लड़ा था....और उसकी जीत हुयी थी....खैर ये कलयुग है लेकिन इस कलयुग में आप जैसे लोग भी सत्य-न्याय-ईमानदारी पर चलने वालों का साथ देने से हट जायेंगे तो ये कलयुग नरक युग में बदल जायेगा इंसानों के लिए ....अतः आप अपने घर को खंडोई ग्राम के जनसमस्या निवारण प्रयास केंद्र के रूप में स्थापित कर अपना जीवन समर्पित कर दीजिये सत्य-न्याय और ईमानदारी को यकिन मानिये आज जो आपको धोखा दे रहें हैं वो लोग भी सदा आपको एक सच्चे इंसान के रूप में अपनी अंतरात्मा में जगह देंगे....सोना तपकर ही सोना बनता है और आप तो तपकर अब एक कोहिनूर हिरा बनने के कगार पर हैं और कोहिनूर हिरा को ये देश और समाज हमेशा याद रखता है हाँ उसे घिसना बहुत परता है .....
आपके सामाजिक जज्बों और समाज सुधार के कार्यों को मेरा नमन.....
यदि पैसे की रिलीज में प्रधान का रोल खत्म कर दिया जाये तो मात्र दस प्रतिशत लोग ही चुनाव लड़ेंगे...
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