कुछ परेशान हूँ - क्या होगा इस देश का, क्या होगा हम सब का, कुछ भी तो पसंद आने लायक नहीं दीखता अपने आस-पास. भारतीय चरित्रहीनता के गहनतम सागर में डूब चुके हैं, और आनंदित हैं. सामर्थ्यवान अपने पदों का दुरूपयोग करते हैं तो समझ में आता है, यह मानवीय निर्बलता है. किन्तु आम आदमी, जिसमें कोई सामर्थ नहीं है, वह भी चतुराई के मार्ग खोजने में इतना तल्लीन रहता है कि कुछ भी मानवीय नहीं कर पाता. सामर्थवान अपनी सामर्थ्य के कारण चतुराई करता है और सामर्थ्हीं अपनी निर्बलताओं को चतुराई से ढकता है. यहाँ तक कि चतुराई ही भारतीयता का प्रतीक बन गयी है और इसी को नोर्मल होना स्वीकार जा चुका है.
किसी को कोई रोग लग जाये तो उससे मिलने वाला कोई भी व्यक्ति उसे तुरंत कोई न कोई अचूक उपचार बताये बिना नहीं रहेगा, जब कि ऐसा प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रोग से पीड़ित होता है. गाँव में अभी एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है जो अपने बचपन से ही रोगी होने कारण शरीर और बुद्धि से अविकसित था, किन्तु वही व्यक्ति जीवनभर अपनी तथाकथित अलौकिक शक्तियों से बच्चों की चिकित्सा करता था - केवल बच्चों पर दृष्टिपात करके. स्त्रियाँ अपने बच्चों को ठीक कराने के लिए उसके पास जाती रहती थीं. कभी किसी को कोई लाभ हुआ या नहीं, इस पर किसी ने कोई विचार नहीं किया. एक मूर्ख की चतुराई भी जीवन-पर्यंत चलती रही.
जीवन में कोई भी समस्या हो, अपना दुःख हल्का करने के उद्येश्य से किसी मित्र से कहिये. तुरंत ही अचूक हल दे दिया जायेगा जब कि मित्र भी अनेक समस्याओं में उलझा होगा और समाधान न पा रहा होगा. विगत १० वर्षों से गाँव में रहता हूँ, सरल, शुद्ध, तनाव-मुक्त जीवन जीने के लिए क्योंकि पैसा कमाते रहने की मेरी विवशताएँ समाप्त हो गयी हैं, सभी बच्चे प्रतिष्ठित कार्यों में लगे हैं, पर्याप्त कमाते हैं और आनंदित हैं. मुझे उनकी चिंता नहीं है और वे मेरी ओर से निश्चिन्त हैं.
गाँव में यथासंभव लोगों की सहायता करता हूँ, उनके दुःख-दर्द में उनके काम आता हूँ, इसलिए कोई न कोई मेरे पास आता ही रहता है, बहुधा अपनी समस्या में मेरी सहायता लेने के लिए. तथापि जो भी आता है मुझे परामर्श अवश्य देता है कि मुझे अपने बच्चों का ध्यान रखना चाहिए, उन्ही के पास रहना चाहिए, आदि, आदि. अपना काम निकालने के बाद लोगों की मुझसे शिकायत रहती है कि मुझे अपने बच्चों से भी मोह नहीं है तो मैं किसी दूसरे के क्या काम आऊँगा. कुछ लोग इसे मेरे विरुद्ध एक षड्यंत्र के रूप में भी उपयोग करते हैं - मुझे बदनाम करने के लिए.
जब भी मुझसे किसी का कोई काम पड़ता है, वह मुझसे मेरी विद्वता की प्रशंसा करता है और अपनी समस्या में मेरी सहायता की याचना करता है. सहायता मिलते ही वह बुद्धिमान हो जाता है और मुझे मूर्ख समझते हुए कुछ उपदेश एकर चला जाता है. गाँव के विकास, स्वच्छता, कार्यशैली, आदि के बारे में किसी से कुछ कहता हूँ तो तुरंत उत्तर मिलता है कि मैं अभी गाँव में नया आया हूँ और यहाँ के तौर-तरीकों से अनभिग्य हूँ जबकि वह इस मामले में चिरपरिचित है. इस प्रकार किसी को भी मेरे परामर्श की आवश्यकता नहीं होती.
अभी-अभी ग्राम पंचायत के चुनाव संपन्न हुए हैं. ग्राम विकास की दृष्टि से मैंने किसी सुयोग्य और इमानदार व्यक्ति को ग्राम-प्रधान पद के लिए चुनने का परामर्श दिया तो मुझे ग्राम-राजनीति से अनभिग्य कहकर नकार दिया गया. पांच प्रत्याशी मैदान में उतरे, सभी सार्वजनिक धन और संपदा को हड़पने के लिए लालायित थे. मतदाताओं को प्रसन्न करने के लिए सभी ने ग्रामवासियों को निःशुल्क शराब पिलाई, तरह-तरह के लालच दिए और अंततः कुछ ने मत पाने के लिए नकद धन भी वितरित किया. परिणाम यह हुआ कि सबसे अधिक भृष्ट व्यक्ति ग्राम-प्रधान चुना गया जिसके लिए उसे लगभग २८ प्रतिशत मिले. इससे शेष ७२ प्रतिशत मतदाता परेशान हैं और उन्हें परेशान किये जाने की आशंका है.
अब लोगों को मेरी सहायता की आवश्यकता पद रही है तो मेरी बुद्धिमत्ता और कार्यकुशलता की प्रशंसा होने लगी है. मुझसे ग्राम पंचायत का सदस्य बनकर ग्राम-प्रधान के कार्य-कलापों पर कड़ी दृष्टि रखने का आग्रह किया जा रहा है जिससे कि उसपर लगाम कसी रहे, अनियमितताएं न कर सके और ग्रामवासियों को परेशान न करे.
चूंकि गाँव में रहने का मेरा एक लक्ष्य लोगों की सहायता करना भी है इसलिए मैं उक्त दायित्व से इनकार भी नहीं कर सकता किन्तु इसके लिए आवश्यक स्थिति की मांग करता हूँ तो मेरी नहीं सुनी जाती. सभी अपने स्वार्थपरक मार्ग पर चलते रहना चाहते हैं किन्तु मेरे संरक्षण में. यह विरोधाभास है जिसमें मैं आजकल उलझा हुआ हूँ.
यही तो वह चरित्र जिसे बदलना चाहिये..
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