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शनिवार, 8 मई 2010

शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप

देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.

देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास  नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.

इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.

भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें.  भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.

ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.  

शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप

देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.

देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास  नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.

इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.

भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें.  भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.

ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.  

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

विष्णु-मरियम विवाह और जीसस का गणेश रूप

कृष्ण और यवनों द्वारा छल-कपट अपनाते हुए देवों की एक-एक करके हत्या की जा रही थी, जिनमें ब्रह्मा (राम), कीचक, कंस, जरासंध, आदि सम्मिलित थे. इससे  देवों की संख्या निरंतर कम हो रही थी. विष्णु उस समय तक अविवाहित थे, इसलिए वंश वृद्धि के प्रयोजन हेतु उन्होंने मरियम के साथ विवाह किया, जिसके कारण वे विष्णुप्रिया कहलाने लगीं. वे दूध की तरह गोरी थीं इसलिए उन्हें लक्ष्मी अर्थात दूध जैसी (lactum = दूध) कहा जाने लगा और उनके पति विष्णु लक्ष्मण के नाम से भी जाने जाते थे.

देवी लक्ष्मी अत्यंत बलशाली थीं और युद्ध कला में पारंगत, इसलिए विष्णु शत्रु विनाश के लिए भी उनका उपयोग किया करते थे. अपने दुर्गा और काली के छद्म रूपों में भी वे शत्रुओं का विनाश करती रहती थीं. उस समय देवों की संख्या अल्प थी इसलिए प्रत्येक जीवित देव को शत्रुओं में भ्रम और भय फैलाने के लिए अनेक रूप धारण करने होते थे ताकि शत्रुओं को उनकी अल्प संख्या का बोध न हो सके. देवी लक्ष्मी भी इसी कारण से कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप धारण किया करती थीं. विष्णु से विवाह के बाद ही विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने चन्द्र गुप्त मोर्य को जन्म दिया था, जो गुप्त वंश के प्रथम सम्राट बने थे.

अल्प संख्यक देवों की सुरक्षा के लिए भी उनका छद्म रूपों में रहना आवश्यक था. भरत छद्म रूप धारण करने और इसके लिए साधन निर्माण में निपुण थे. उन्होंने स्वयं भी नौ रूप धारण किये थे.

जीसस अत्यंत मेधावी व्यक्ति थे किन्तु उनमे शारीरिक बल का अभाव था. उधर यवन उन्हें पकड़ने के प्रयासों में लगे रहते थे. इसलिए देवों को उनकी सुरक्षा की विशेष चिंता रहती थी. यवनों के भारत में बसने से पूर्व वे किसी भी स्थान पर एक रात्री से अधिक नहीं ठहरते थे जिसके कारण वे अपने शोध और लेखन कार्य नहीं कर पाते थे. उन्हें गुप्त रूप में एक स्थान पर रखने के लिए भरत ने उन्हें गणेश जी का छद्म रूप प्रदान किया.

गणेश जी का रूप प्रदान करने के लिए अगर की नरम काष्ठ से हाथी की सूंड सहित एक मुखौटा बनाया गया जिससे जीसस के सिर और मुख को आवृत किया गया. इसके बाद वे एक स्थान पर रहकर लेखन कार्य करते रहते थे. जीसस को अनेक नामों से भी जाना जाता था जिनमें श्री, प्रथम, गणेश, सृष्टा आदि प्रमुख थे. भाई बहेन गणेश तथा लक्ष्मी की प्रायः एक साथ पूजा अर्चना की जाती है.          

विष्णु-मरियम विवाह और जीसस का गणेश रूप

कृष्ण और यवनों द्वारा छल-कपट अपनाते हुए देवों की एक-एक करके हत्या की जा रही थी, जिनमें ब्रह्मा (राम), कीचक, कंस, जरासंध, आदि सम्मिलित थे. इससे  देवों की संख्या निरंतर कम हो रही थी. विष्णु उस समय तक अविवाहित थे, इसलिए वंश वृद्धि के प्रयोजन हेतु उन्होंने मरियम के साथ विवाह किया, जिसके कारण वे विष्णुप्रिया कहलाने लगीं. वे दूध की तरह गोरी थीं इसलिए उन्हें लक्ष्मी अर्थात दूध जैसी (lactum = दूध) कहा जाने लगा और उनके पति विष्णु लक्ष्मण के नाम से भी जाने जाते थे.

देवी लक्ष्मी अत्यंत बलशाली थीं और युद्ध कला में पारंगत, इसलिए विष्णु शत्रु विनाश के लिए भी उनका उपयोग किया करते थे. अपने दुर्गा और काली के छद्म रूपों में भी वे शत्रुओं का विनाश करती रहती थीं. उस समय देवों की संख्या अल्प थी इसलिए प्रत्येक जीवित देव को शत्रुओं में भ्रम और भय फैलाने के लिए अनेक रूप धारण करने होते थे ताकि शत्रुओं को उनकी अल्प संख्या का बोध न हो सके. देवी लक्ष्मी भी इसी कारण से कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप धारण किया करती थीं. विष्णु से विवाह के बाद ही विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने चन्द्र गुप्त मोर्य को जन्म दिया था, जो गुप्त वंश के प्रथम सम्राट बने थे.

अल्प संख्यक देवों की सुरक्षा के लिए भी उनका छद्म रूपों में रहना आवश्यक था. भरत छद्म रूप धारण करने और इसके लिए साधन निर्माण में निपुण थे. उन्होंने स्वयं भी नौ रूप धारण किये थे.

जीसस अत्यंत मेधावी व्यक्ति थे किन्तु उनमे शारीरिक बल का अभाव था. उधर यवन उन्हें पकड़ने के प्रयासों में लगे रहते थे. इसलिए देवों को उनकी सुरक्षा की विशेष चिंता रहती थी. यवनों के भारत में बसने से पूर्व वे किसी भी स्थान पर एक रात्री से अधिक नहीं ठहरते थे जिसके कारण वे अपने शोध और लेखन कार्य नहीं कर पाते थे. उन्हें गुप्त रूप में एक स्थान पर रखने के लिए भरत ने उन्हें गणेश जी का छद्म रूप प्रदान किया.

गणेश जी का रूप प्रदान करने के लिए अगर की नरम काष्ठ से हाथी की सूंड सहित एक मुखौटा बनाया गया जिससे जीसस के सिर और मुख को आवृत किया गया. इसके बाद वे एक स्थान पर रहकर लेखन कार्य करते रहते थे. जीसस को अनेक नामों से भी जाना जाता था जिनमें श्री, प्रथम, गणेश, सृष्टा आदि प्रमुख थे. भाई बहेन गणेश तथा लक्ष्मी की प्रायः एक साथ पूजा अर्चना की जाती है.