पिछले 3 वर्ष के यादव राज में उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक पिछड़ा राज्य बन गया है। बेरोजगारी और भृष्टाचार निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। बिजली की उपलब्धि सतत निराशाजनक बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों बिजली घोषित 12 घंटे के स्थान पर औसतन 6 घंटे प्रतिदिन ही दी जा रही है। प्रदेश में बिजली का कोई विशेष संकट नहीं है, केवल कुव्यवस्था है। प्रशासक विशाल स्तर पर बिजली की चोरी करवा रहे हैं जिससे ईमानदार उपभोक्ताओं के लिए बिजली की उपलब्धि सीमित ही बनी रहती है, जबकि उनको प्रदत्त बिजली की दरें बार-बार बढ़ाई जा रहीं हैं। बिजली की कुव्यवस्था के कारण स्थापित उद्योग-धंधे ठप पड़े हैं, और नए लग नहीं रहे हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ रही है। लोगों को मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ रहा है।
सरकार के भृष्ट कार्य-कलापों में बार- बार उच्च न्यायालय को दखल देना पड़ रहा है, जिसके बाद भी बेशर्म शासक-प्रशासक अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं। अभी चल रही पुलिस भर्ती प्रक्रियाओं पर न्यायालय को रोक लगानी पडी क्योंकि भर्ती में विशाल स्तर पर धांधली पाई गयी है, जिसकी जांच न्यायालय द्वारा की जा रही है। ईमानदार बेरोजगार युवकों को बार-बार संघर्ष करना एवं निराश होना पड़ रहा है जबकि बेईमान पदासीन किये जा रहे हैं।
प्रदेश के एक यादव चीफ इंजीनियर ने अपने भृष्ट आचरण से 1000 करोड़ की संपत्ति एकत्र कर ली है, तथापि शासक वर्ग स्पष्ट कारणों से उसे बचाने के प्रयास में लगा है। प्रदेश के एक पूर्व मंत्री ने केवल 30 महीने में 1000 करोड़ की सम्पदाएँ बना लीं, उसके विरुद्ध कार्यवाही में भी लापरवाही की जा रही है।
प्रदेश में शीर्ष स-मा-ज-वा-द का लबादा ओढ़े नेता 100000 लोगों को दावत देते हैं जिसमें 900000 का सूट पहनने वाले प्रधान-मंत्री भी सम्मिलित होते हैं। अतः स्पष्ट है सब राजनेता मिलकर लूट में लगे हैं।
प्रदेश में आज भी लोग 2000 रुपये प्रतिमाह पर मजदूरी करने के लिए विवश हैं। इस कुव्यवस्था के लिए जहाँ शासक-प्रशासक सक्रिय रूप में उत्तरदायी हैं, पूरा विधायक मंडल भी अपनी निष्क्रियता के कारण उत्तरदायी है। इस पर भी शासन ने विधायकों के वेतन-भत्ते 55000 से बढ़ा कर 99000 रुपये प्रतिमाह कर दिए गए, जिसका सभी विधायकों ने समर्थन किया। अब उनकी मांग है कि उनकी विकास-निधि में भी वृद्धि की जाये।
भारत के योजना आयोग के अनुसार एक परिवार के जीवन-यापन के लिए 28 रुपये प्रतिदिन पर्याप्त हैं। जिसका अर्थ यह हुआ कि अब उत्तर प्रदेश प्रत्येक विधायक 116 परिवारों के भरण-पोषण को अकेला ही डाकरेगा। चूंकि यह संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है, अतः भारत का संविधान भी इसके लिए दोषी है, जिसका कोई वैधानिक निराकरण संभव नहीं है। अतः त्रस्त लोगों के लिए दो ही विकल्प हैं - सब कुछ सहते रहें, अथवा भृष्ट व्यवस्था के विरुद्ध अवैधानिक कार्यवाही करने का साहस करें, जैसा कि नक्सलवादी करते रहे हैं, किन्तु वे निशाना गलत चुनते हैं।
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