शनिवार, 15 मई 2010

बौद्धिकता का सत्तारोहण

बौद्धिक जनतंत्र मूलतः देश की बैद्धिकता का सम्मान है. भारत की लगभग २५ प्रतिशत जनसँख्या बौद्धिक है जिन का केवल २०  प्रतिशत अर्थात कुल जनसँख्या का ५ प्रतिशत, किसी न किसी रूप में राज्य सेवा में संलग्न है, शेष ८० प्रतिशत, कुल जनसँख्या का २० प्रतिशत, स्वतंत्र रूप से राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहा है. इस स्वतंत्र बौद्धिक वर्ग का, जो समस्त भारत में तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में फैला है, का कोई अन्य वर्ग मुकाबला करने में समर्थ नहीं है. अतः यह वर्ग देश का सर्वाधिक प्रबल वर्ग है, अंतर केवल इतना है कि इसे कोई राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं है और न ही राज्य व्यवस्था में इसका उपयोग किया जा रहा है.
यह बौद्धिक वर्ग देश के व्यवसाय का संचालन कर अर्थ व्यवस्था में अपना योगदान दे रहा है, शिक्षा और स्वास्थ सेवाएँ इसके बल पर चल रही हैं, न्याय व्यवस्था और प्रशासन में इसका सतत योगदान है, विज्ञानं और तकनीकी इसी के आश्रित है, साहित्य एवं जन-माध्यम पर इसका अधिकार है, और कला और दस्तकारी इसके बल पर विकासशील हैं. सभी क्षेत्रों में बौद्धिक वर्ग का  योगदान है तथापि राजनेता इनके कार्यों का श्री स्वयं लेते हैं और इस वर्ग को राष्ट्र धारा से अलग-थलग रखने का प्रयास करते रहते हैं. इस प्रकार राजनेता बौद्धिक वर्ग का शोषण कर रहे हैं.
कुछ समय पूर्व तक राजनेता असामाजिक तत्वों का शोषण करते थे और उनके बल पर राजनैतिक सत्ता प्राप्त करते थे. जब इन असामाजिक तत्वों ने इसे जाना तो वे स्वयं राजनेता बन बैठे और सत्तासीन हो गए. आज यही असामाजिक तत्व राजनेता बन बौद्धिक वर्ग का शोषण कर रहे हैं.

अब समय आ गया है बौद्धिक वर्ग अपनी सामर्थ को पहचाने और देश की सत्ता पर अधिकार करे. बौद्धिक वर्ग वर्तमान सत्तासीन राजनेता वर्ग की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली है, कहीं अधिक साधन-संपन्न है, जनसँख्या में अधिक बड़ा है, बुद्धि-संपन्न है, और सर्वोपरि स्वयं-सिद्ध है. इस वर्ग को जागृत होने की आवश्यकता है त्ताकी देश की राजसत्ता पर इसका अधिकार स्थापित हो.

जैसा कि ऊपर कहा गया है, बौद्धिक वर्ग देश की जनसँख्या का लगभग २५ प्रतिशत है, जिसमें इंजिनियर, डॉक्टर, एडवोकेट , वैज्ञानिक, पत्रकार, आदि प्रबुद्ध व्यवसायिक लोग सम्मिलित हैं. किन्तु इनमें से २० प्रतिशत, देश की जनसँख्या का ५ प्रतिशत,  राज्यकर्मियों के रूप में राजनेताओं के चंगुल में फंसे हैं जब कि राजनेताओं की कुल जनसँख्या केवल ५ प्रतिशत है. ये राजनेता देश के आर्थिक विकास का श्री लेते हैं और उसके बल पर अपने भृष्ट आचरणों से धनवान होते जा रहे हैं जिसके बल पर देश की राजनैतिक सत्ता पर अधिकार बनाये रहते हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि देश का बौद्धिक वर्ग संगठित न होकर बुरी तरह विभाजित है.

ऐतिहासिक दृष्टि से बौद्धिक वर्ग लगभग एक दर्ज़न संस्कृतियों की उपज है जो विश्व भर में फ़ैली हैं. इस प्रकार बौद्धिक वर्ग की व्यापकता सर्वाधिक है. इस के कारण यह वर्ग विश्व की किसी भी समस्या को सरलता से सुलझा सकता है. तथापि इस वर्ग में भी कुछ लोग रक्त दोष से ग्रसित हैं, जो विश्वसनीय नहीं हैं. यह भारत के लोगों को और उनकी समस्याओं को अपनी व्यापकता, लोगों के साथ घनिष्ठ संबंधों, लोगों द्वारा अपनी बौद्धिकता के सम्मान के कारण अच्छी तरह पहचानता है. इसलिए जन साधारण इनका प्राकृत रूप से समर्थक है, और इनके जागृत होकर प्रयास करने पर इन्हें सत्तासीन कर देगा.

बौद्धिक वर्ग की श्रेष्ठताएँ सर्व विदित हैं, किन्तु इसकी कुछ निर्बलताएँ भी हैं. इस वर्ग में से अनेक लोग किसी संघर्ष में सक्रिय होने में रूचि नहीं रखते, इसलिए प्रस्तावित मनोवैज्ञानिक युद्ध में भी उनकी कोई रूचि नहीं होगी. दूसरे, इस वर्ग के कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों वश विरोधी राजनेताओं के चंगुल में फंस कर उनका समर्थन करने लगेंगे. इस प्रकार इस वर्ग के मध्य ही संघर्ष छिड़ जाएगा.

Intellectualsमूल रूप में, बौद्धिकता वर्त्तमान स्थिति में सुधार करना है, जिसके अनेक माध्यम हो सकते हैं - यथा सामाजिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक, आदि. इस कारण से सभी बौद्धिक लोग किसी एक मार्ग पर कदापि सहमत नहीं होते, यद्यपि उन सभी के मंतव्य शुभ होते हैं, और लक्ष्य भी एक हो सकता है. यह बौद्धिक वर्ग की सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्बलता है. बौद्धिक लोगों को एक दूसरे के प्रति सहिष्णु होना होगा और एक दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान करना होगा. यह तभी संभव है जब सभी बौद्धिक लोग अपना ध्यान देश के लिए दूसरी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लक्ष्य पर केन्द्रित करें.
 
बौद्धिक वर्ग के विभाजन का एक बड़ा कारण यह है कि इस वर्ग की भूल जनसँख्या रचनात्मक कार्यों में लगी है, किन्तु एक दूसरे के रचनात्मक कार्यों के अध्ययन हेतु समय प्रदान नहीं करती, इस कारण से एक दूसरे के कार्य के बारे में अनभिज्ञ रहती है. इसके निवारण के लिए इस वर्ग के लोगों को पारस्परिक अध्ययन करने होंगे.       

शुक्रवार, 14 मई 2010

सोम

The Human Body (Scholastic First Discovery)आधुनिक संस्कृत ने शास्त्रों में संदर्भित 'सोम' के बारे में बहुत सारे भ्रम फैलाये हैं. वस्तुतः यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द  सोमा  के समतुल्य है जिसका अर्थ 'शरीर' अथवा 'पिंड' है. इतनी छोटी सी बात का महापंदितों ने बतंगड़ बनाया हुआ है.  

गुरुवार, 13 मई 2010

मानव अधिकार आयोग की पुलिस पर निर्भरता

लगभग २ वर्ष पूर्व एक नव-विवाहित युगल रात्रि में मेरे गाँव से होकर कहीं जा रहा था. रास्ते में वे एक विद्युत् वोल्टेज युक्त तार में उलझ गए और दोनों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी. वह तार लगभग ८ दिन से टूटा पडा था और सम्बंधित विद्युत् कर्मियों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था. अतः मृत्यु विद्युत् कर्मियों की लापरवाही से हुई जिसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए था.




युगल की पूर्व कथा कुछ इस प्रकार है. युवक तथा युवती परस्पर सम्बंधित थे और एक दूसरे से प्रेम करते थे.  युवती के परिवार ने इसका विरोध किया था और इसके लिए युवक की कुछ पिटाई भी की थी. इस पर भी वे नहीं माने तथा उन्होंने विवाह कर लिया. दुर्घटना की रात्रि युवक युवती को उसके घर से लेकर भाग रहा था. मृत्यु स्थल पर उनके शवों को देखने से स्पष्ट था कि विद्युत् तार में पहले युवती फंसी थी, जिसपर युवक ने उसे तार से छुडाने का प्रयास किया जिसमें वह भी मारा गया. उसके मृत चेहरे के भावों से स्पष्ट था कि युवक ने अंतिम दम तक संघर्ष किया था.


पुलिस ने स्थल पर आकर पंचनामा भरा जिसमें स्पष्ट लिखा गया कि मृत्यु जीवित विद्युत् तार में उलझकर विद्युत् की उपस्थिति से हुई. युवक के पास से कुछ कागजात भी पाए गए जिनमें उप जिलाधिकारी के नाम युवती की ओर से एक पत्र भी था जिसमें उसने अपनी माँ के दुश्चरित्र होने का आरोप लगाया था और उसके साथ दुर्व्यवहार की शिकायत की थी.

उनके शवों का पोस्ट मार्टम कराया गया जिसमें दोनों के शवों पर विद्युत् से जले जाने के चिन्ह पाए गए थे. युवक के सिर पर भी चोट का चिन्ह था किन्तु युवती के शरीर पर कोई चोट आदि का चिन्ह नहीं था. पोस्ट मार्टम की औपचारिकता के बाद केस को ठन्डे बसते में दाल दिया गया, अर्थात मृत्यु के दोषियों के विरुद्ध पुलिस स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी.

दुर्घटना के लगभग एक माह तक कोई कार्यवाही न होने पर मैं स्थानीय पुलिस थाना प्रभारी से मिला और पूरी घटना के बारे में कार्यवाही की मांग की. उसने मुझे सियाना तहसील दिवस में उप जिलाधिकारी के समक्ष शिकायत करने का परामर्श दिया ताकि उसे दिशा निर्देश मिलें और वह कार्यवाही करे. मैंने उप जिलाधिकारी के समक्ष शिकायत कर दी. इस पर पुलिस तथा विद्युत् अधिकारियों ने दवाब बनाकर युवक के पिता से युवती के माता-पिता के विरुद्ध हत्या की शिकायत करा दी. पुलिस ने तुरंत युवती के माता, पिता और एक मित्र को हत्या के अपराध में बंदी बना लिया और कारागार भेज दिया. उनपर हत्या का मुकदमा चलाया जा रहा है.
Electrocution of America: Is Your Utility Company Out to Kill You?

युवक के पास से युवती के उक्त पत्र से स्पष्ट है कि यदि युवती के माता-पिता उनकी हत्या करते तो वे उस पत्र को उनके पास कदापि नहीं छोड़ते. जब कि पुलिस का आरोप है कि युगल की हत्या के बाद उनके शवों को वहां विद्युत् तार में उलझाया गया. युवक के अंतिम दम तक संघर्ष करना भी इसे झूठ सिद्ध करता है.

इससे क्षुब्ध होकर मैंने इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में की, जिसने उसी पुलिस को रिपोर्ट देने के आदेश दिए जिस ने निर्दोषों के विरुद्ध हत्या का आरोप लगाया है. पुलिस ने आयोग के पत्र के लगभग ६ माह बाद, जब मामला ठंडा पड़ गया, आयोग को अपनी कार्यवाही को उचित बताते हुए मामले के न्यायालय के अधीन होने की सूचना दे दी. इस पर मानवाधिकार आयोग ने मेरी शिकायत निरस्त कर दी.

आव, एव

Ancestor: A Novelआव 
शास्त्रों में उपयुक्त शब्द 'आव' का अर्थ पितामह' है क्योंकि इसका मूल शब्द लैटिन भाषा का  avus   है. इसे पूर्वजों के भाव में भी उपयोग किया गया है. आधुनिक संस्कृत में इसका अर्थ 'पानी' लिया गया है.  

Hail, Holy Queen: The Mother of God in the Word of Godएव 
शास्त्रीय शब्द  'एव' शब्द का मूल लैटिन शब्द  ave   है जिसका अर्थ 'प्रशंसा' अथवा 'शुभ कामना' है. आधुनिक संस्कृत के इसके अर्थ 'ही' से शास्त्रीय मंतव्य का कोई सम्बन्ध नहीं है.

लिप्सा

120 Banned Books: Censorship Histories of World Literature
शास्त्रों में 'लिप्सा' शब्द लैटिन भाषा के शब्द  lepsis   से बनाया गया है जिसका अर्थ 'रोकना' अथवा 'प्रतिबंधित करना' है. आधुनिक संस्कृत के इसके अर्थ 'लालच' से शास्त्रीय भाव का कोई सम्बन्ध नहीं है.

राजसूय यज्ञ

Empireशास्त्रों में राजाओं द्वारा 'राजसूय यज्ञ' आयोजित किये जाने के सन्दर्भ पाए जाते हैं. हम पहले ही 'राज' शब्द का अर्थ 'शासक तथा 'यज्ञ' शब्द का अर्थ 'बस्ती' सिद्ध कर चुके है. 'सूय' शब्द लैटिन भाषा के  सुई  शब्द से उद्भूत है जिसका अर्थ 'स्वयं' है. अतः 'राजसूय यज्ञ' का अर्थ 'ऐसी बस्ती है जहां स्वयं का शासन हो'. इस यज्ञ करने का तात्पर्य ऐसी बस्ती बसाना है.