रविवार, 9 मई 2010
उप
'उप' शब्द का उपयोग संस्कृत तथा हिंदी में एक प्रत्यत के रूप में होता है, किन्तु शास्त्रों में यह प्रत्यत के अतिरिक्त एक स्वतंत्र शब्द भी है और अंत्यत के रूप में भी उपयोग किया गया है. शास्त्रों में यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द 'ops' से उद्भूत है जिसका अर्थ 'आँख' है. तदनुसार लैटिन भाषा के शब्द 'opus' का अर्थ दृश्य वस्तु अथवा रचना है. अतः शास्त्रों में इस शब्द के प्रत्यत अथवा अंत्यत उपयोग इससे जुड़े शब्द के दृश्य रूप के लिए किया गया है. जैसे शास्त्रीय शब्द 'उपयोग' का अर्थ 'औषधि का स्वरुप' है. इस प्रकार शास्त्रीय प्रत्यत 'उप' का अर्थ हिंदी के 'रूप' के समतुल्य लिया जा सकता है.
वराह, वराहावतार
शास्त्रों में 'वराह' शब्द अरबिक, पर्शियन, आदि भाषाओँ के शब्द 'बहर' के समानार्थक है जिसका अर्थ 'जल प्रवाह' अथवा 'जलाशय' है. इस प्रकार वराह शब्द के अर्थ 'नदी' तथा 'समुद्र' भी हैं. उत्तरी भारत में किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए उपयुक्त नाली को 'बराह' कहते हैं जो 'वराह' का ही विकृत रूप है. आधुनिक संस्कृत का शब्द 'प्रवाह' भी इसी भाव में उपयोग किया जाता है.
वराह शब्द से ही 'वराहावतार' शब्द बना है जिसका अर्थ 'समुद्र अथवा नदी को पार कर जाने वाला व्यक्ति' है क्योंक कि 'अवतार' का अर्थ 'पराजित करने वाला' व्यक्ति है.
वराह शब्द से ही 'वराहावतार' शब्द बना है जिसका अर्थ 'समुद्र अथवा नदी को पार कर जाने वाला व्यक्ति' है क्योंक कि 'अवतार' का अर्थ 'पराजित करने वाला' व्यक्ति है.
अवतार
शास्त्रीय शब्द 'अवतार' कर वास्तविक अर्थ 'पराजित करने वाला' है क्योंकि यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'abatuere' से बना है जिसका अर्थ 'पराजित कर मान घटाना' है. इस प्रकार शब्द 'कृष्णावतार' का अर्थ 'कृष्ण को पराजित करने वाला' है, जबकि आधुनिक संस्कृत में इसका अर्थ 'कृष्ण नामक ईश्वरीय रूप' है जिसका शास्त्रों के लिए कोई महत्व नहीं है.
शनिवार, 8 मई 2010
शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप
देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप
देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
देवनागरी लिपि
आधुनिक संस्कृत में 'देवनागरी लिपि' का अर्थ हिंदी, संस्कृत, मराठी आदि भाषाओँ की वर्णमाला है जिसका शास्त्रीय अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है.
देव उस जाति का नाम है जिसने भारत राष्ट्र की संकल्पना की और इसे विकसित किया.
नागरी शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द नाकाराड्स से बना है जिसका अर्थ गहरा लाल-नारंगी रंग अथवा ऐसे रंग का सुकोमल वस्त्र है जिसे praacheen काल में देवों द्वारा उत्तरीय के रूप में उपयोग किया जाता था.
इस शब्द संग्रह में लिपि का अर्थ बाहरी वस्त्र है.
इस प्रकार देवनागरी लिपि का अर्थ 'देवों द्वारा उत्तरीय के रूप में धारण गहरे लाल-नारंगी रंग का वस्त्र' है.
देव उस जाति का नाम है जिसने भारत राष्ट्र की संकल्पना की और इसे विकसित किया.
नागरी शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द नाकाराड्स से बना है जिसका अर्थ गहरा लाल-नारंगी रंग अथवा ऐसे रंग का सुकोमल वस्त्र है जिसे praacheen काल में देवों द्वारा उत्तरीय के रूप में उपयोग किया जाता था.
इस शब्द संग्रह में लिपि का अर्थ बाहरी वस्त्र है.
इस प्रकार देवनागरी लिपि का अर्थ 'देवों द्वारा उत्तरीय के रूप में धारण गहरे लाल-नारंगी रंग का वस्त्र' है.
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