मानावोदय का विज्ञानं - मनोविज्ञान पृथ्वी पर जीवन के उदय के साथ ही क्रियान्वित हो गया था, यद्यपि इसका भान मानवों को बहुत बाद में हुआ. मनुष्य, चाहे एकाकी चिंतन मग्न हो, चाहे भीड़ के कोलाहल में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर रहा हो, वह सभी समय मनोवैज्ञानिक खेलों में रत रहता है, जो कभी पारस्परिक संग्राम होते हैं तो कभी पारस्परिक सहयोग.
मनोविज्ञान मन का विज्ञानं है जो सभी जीवों में अनिवार्य रूप से सक्रीय रहता है. किन्तु मानवों ने इसे समझा है और इसका सदुपयोग तथा दुरुयोग किया है. मन केवल मस्तिष्क नहीं होता और न ही इसे शरीर के किसी एक अंग में पाया जा सकता है. यह शरीर की प्रत्येक कोशिका में उपस्थित चेतनात्मक अवयवों की समष्टि होता है जो मनुष्य का सम्बन्ध समस्त जगत से स्थापित करता है. कभी उसके समक्ष समर्पित होता है तो कभी उसे समर्पण पर विवश करता है. मन ही मनुष्य के शरीर को स्वस्थ रखता है अथवा इसे रुग्ण बनाता है.
मन का संचालन केंद्र मनुष्य का मस्तिष्क होता है जो समस्त शरीर में फैले अत्यंत विस्तृत नाडीतंत्र के माद्यम से मन को संचालित करता है.वस्तुतः मन मस्तिष्क और नाडीतंत्र की समष्टि ही है, इसलिए इसे स्वसंचालित भी कहा जा सकता है.
कुछ मानव-विकसित विद्याओं जैसे वशीकरण, परमन-पठन, आदि की प्रभाविता से सिद्ध होता है कि प्रत्येक जीव का मन एक सार्वभौमिक माद्यम से अन्य जीवों के मनों से विना किसी संवाद के परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर सकता हैं. मनोविज्ञान का बहुलांश इसी प्रकार के दूरस्थ सम्बन्ध स्थापन का अध्ययन करता है और वस्तुतः इसी हेतु लक्षित होता है.
मनुष्य में मन का यदी होना ही उसे सशक्त एवं महान बनाता है. इसी प्रक्रिया को महामानव का उदय होना कहते हैं. श्री अरविन्द के मतानुसार साधारण मानव ही महामानव बनाने की संभावना रखते हैं और ये उसी प्रकार बनाते हैं जैसे कभी वनमानुष से मनुष्य बना तथापि कुछ वनमानुष यथावत भी रह गए. इस प्रकार, महामानवों की उत्पत्ति पर भी साधारण मानव समाप्त नहीं होते, अर्थात महामानव मोनावों के मध्य से ही उगते हैं.
महामानव प्राकृत एवं सतत कार्यरत उदयन प्रक्रिया के उत्पाद होते हैं, जिनका सोचने एवं कार्य करने के तौर-तरीके साधारण मानवों से भिन्न होते हैं और उनकी उपस्थिति मानव समाज को एक नै दिशा देती है. इन्हें समाज के पथप्रदर्शक भी कहा जाता है. किन्तु सभी पथप्रदर्शक महामानव नहीं होते. कुछ मानव छल-कपट, शक्ति और अधिकार के माध्यम से समाज के पथ प्रदर्शक बन बैठते हैं, वस्तुतः ये समाज को पथ भृष्ट ही करते हैं. किन्तु शक्ति और अधिकार के कारण अग्रणी बने इन मानवों में विशिष्टता का बोध होने लगता है. अतः, महामानवों की पहचान यह है कि वे बिना किसी बाह्य शक्ति एवं अधिकार के समाज में सकारात्मक परिवर्तन की लहर उत्पन्न करते हैंऔर उनका प्रभाव दीर्घकालिक होता है. प्रायः ये अपने जीवन काल में महामानव के रूप में पहचाने भी नहीं जाते. कुछ साधारण पहचानों के रूप में ये दीर्घायु होते हैं और समाज में अपना स्थान अपने सत्कर्मों से बनाते हैं जिन्हें दीर्घ काल तक याद किया जाता है. यही इनका अमरत्व होता है. प्राचीन काल में सुकरात, ब्रह्मा (राम), विष्णु (लक्ष्मण), विश्वामित्र, आदि कुछ महामानव रहे हैं. .