जब से मैंने गाँव में आकर रहना आरम्भ किया है, तब से ही उन लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है जो विगत ३० वर्षों से गाँव के लोगों के आपराधिक शोषण करते रहे थे और उनके विरुद्ध कोई आवाज़ बुलंद नहीं होती थी. पिताजी के गाँव से चले जाने के बाद यह आवाज शांत हो गयी थी और मेरे आने के बाद पुनः झंकृत होने लगी है. ये आपराधिक प्रवृत्ति के लोग एक समूह बनाकर रहते हैं और गाँव में चोरी, राहजनी, मार-पिटाई, बलात्कार आदि अपराध करते रहे हैं और इनकी स्थानीय पुलिस से घनिष्ठ सांठ-गाँठ के कारण लोग चुपचाप यह सब सहन करते रहे हैं. मेरे आने के बाद बलात्कार आदि के अनेक मामले पूरी कठोरता के साथ उठाये गए हैं और दोषियों को दंड दिए गए हैं अथवा दंड की कार्यवाही की गयी है. इसीसे मैं इनकी आँख की किरकिरी बना हुआ हूँ. इसलिए ये कोई ऐसा अवसर नहीं छोड़ते जब भी इन्हें मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र रचने का अवसर मिले.
अयोध्या मामले को लेकर प्रशासन ने जन-सामान्य के मस्तिष्क में एक हऊआ खडा कर दिया है और उसे इस बारे में जागृत कर ड़ोया है. अन्यथा जन-सामान्य अपनी व्यक्तिगत समस्याओं में इतना उलझा हुआ है कि उसे इन सब बातों से कोई लेना देना नहीं है. किन्तु राजनेताओं ने अपना महत्व बनाये रखने के लिए इसे एक हऊए के रूप में जनता के सामने लाकर खडा कर दिया है.
इस के परिपेक्ष्य में देश भर के प्रत्येक गाँव, कसबे एवं नगर से पुलिस प्रशासन को उन लोगों लोगों की सूची तैयार करने को कहा गया है जो किसी भी प्रकार से सक्रिय रहते हैं और उन्हें धार्मिक कट्टरपंथी घोषित किया गया है. यह मेरे विरोधियों के लिए एक सुनेहरा अवसर था जब वे अपने पुलिस के साथ संपर्कों का उपयोग कर मुझे एक धार्मिक कट्टरपंथी घोषित करा सकते थे और उन्होंने ऐसा करा ही दिया. स्थानीय पुलिस ने पूरे गाँव में मुझ अकेले को एक धार्मिक कट्टरपंथी घोषित कर प्रशासन को इसकी सूचना भेज दी. जब कि पूरा क्षेत्र तथा मेरा इन्टरनेट नेटवर्क जानता है कि मैं एक कट्टर नास्तिक हूँ और इस बारे में मैं अपना मत यथासंभव प्रकट करता रहता हूँ इसी विषय पर मेरा एक ब्लॉग भी है. तथापि पुलिस और प्रशासन के अनुसार मैं एक धार्मिक कट्टरपंथी हूँ.
कल २२ सितम्बर को मुझे उप जिला मजिस्टेट, सियाना, बुलंदशहर का एक नोटिस मिला कि मैं २३ सितम्बर को न्यायालय में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दूं कि क्यों न मुझसे एक लाख रुपये का बंधक पत्र भरवाया जाये. इस पर मैंने पुलिस थाना प्रभारी सुभाष चंद राठोड से फोन पर बातें की कि मेरे नाम से ऐसी भद्दी रिपोर्ट क्यों की गयी जिसपर उसने बताया कि यह कोई गंभीर मामला नहीं है और किसी ने रिपोर्ट लिख दी होगी जिसकी उसे कोई जानकारी नहीं थी. इस थाना प्रभारी का अब स्थानांतरण हो गया है.
तदनुसार आज मैं न्यायालय में उपस्थित हुआ जहां उप जिलाधिकारी एवं न्यायाधीश श्री राजेश कुमार सिंह धारा १०७/११६ के अंतर्गत मुझे बंधक पत्र देने का निदेश दिया जिससे मैंने इनकार कर दिया और स्पष्ट किया कि मैं एक नास्तिक हूँ और मुझे धार्मिक कट्टरपंथी कहना मेरा घोर अपमान है और इस बारे में मुझसे बंधक पत्र की मांग करना मेरे आत्मसम्मान पर आक्रमण है. इस पर मेरे विरुद्ध वारंट जारी करने की धमकी दी गयी जिस पर मैं स्वयं ही कारागार भेजे जाने के लिए प्रस्तुत हो गया. इसके साथ ही मेरे अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि न्याय व्यबस्था के अनुसार धरा १०७/११६ के अंतर्गत मुझे बंधक पत्र के लिए बाध्य नहीं दिया जा सकता. किन्तु न्यायाधीश का मत था कि वे किसी को भी बंधक पत्र के लिए बाध्य कर सकते हैं जिसको मैंने तथा मेरे अधिवक्ता ने चुनौती दी.
इस सब चर्चा के बाद मुझे अगली दिनांक ४ अक्टूबर को पुनः उपस्थित होने का निर्देश दिया गया, साथ ही मेरे आवेदन पर पुलिस को पुनः जांच कर अपनी रिपोर्ट देने का निर्देश भी दे दिया गया, जो मेरी आंशिक विजय है.
इसके बाद मैंने स्थानीय पुलिस में सिपाही ताहिर अली तथा उपनिरीक्षक चेतराम सिंह से संपर्क किया जिनकी इस रिपोर्ट पर मुझे कट्टरपंथी घोषित किया गया कि मैं धार्मिक उन्माद फैला रहा था. इसमें सिपाही पूरी तरह निर्दोष पाया गया क्योंकि उसे इस बारे मैं कोई जानकारी नहीं थी. रिपोर्ट में उसका नाम उपनिरीक्षक ने उसको कोई सूचना दिए बिना ही लिख दिया था. उपनिरीक्षक चेतराम सिंह ने मुझे बताया कि उसे रात्रि में ९ बजे थाना प्रभारी ने विवश किया था कि वह उसी समय किसी एक व्यक्ति के नाम कट्टरपंथी होने के रिपोर्ट तैयार करे. पुलिस थाने की पंचायत चुनाव संबंधी काली सूची में मेरा नाम सर्वोपरि था जो मेरे विरोधियों ने एक अन्य उपनिरीक्षक नरेश कुमार शर्मा से मिलकर तैयार कराई थी. इसलिए उसने मेरे नाम से ही वह रिपोर्ट तैयार कर दी जब कि उस समय तक सिपाही ताहिर अली तथा उपनिरीक्षक चेतराम सिंह मुझे जानते भी नहीं थे.
पुलिस थाने में लम्बी चर्चाओं के बाद ज्ञात हुआ कि पुलिस कोई भी कार्य गंभीरता से नहीं करके केवल औपचारिकतावश अपने अनेक कार्य करती रहती है और मुझे आश्वासन दिया गया कि मेरे विरुद्ध उक्त रिपोर्ट निरस्त कर दी जायेगी. किन्तु स्थानीय पुलिस में कोई भी विश्वसनीय नहीं है और न ही कोई अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर अथवा निष्ठांवान है. किसी के भी साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है.