- वेदों और शास्त्रों का वास्तविक ज्ञान लुप्त हो गया,
- वेदों और शास्त्रों की प्रमाणिकता का दुरूपयोग कर षड्यंत्रकारियों ने अपना भ्रम फ़ैलाने का लक्ष्य प्राप्त किया.
- निरक्षर षड्यंत्रकारियों को अपने मंतव्य हेतु कोई नया ग्रन्थ नहीं लिखना पड़ा. परिणामस्वरूप, देवों के विज्ञानं और इतिहासपरक ग्रन्थ - वेद और शास्त्र, धर्म ग्रन्थ मने जाने लगे.
आज का भारतीय समाज तीन वर्गों में विभाजित देखा जा सकता है - नगण्य कर्मावलम्बी, संगठित धर्मावलम्बी और असंख्य अज्ञान और अचिंतन के अन्धकार से भ्रमित जनसाधारण. कर्मावलम्बी परिश्रम करते हैं और अपनी बुद्धि का सदुपयोग करते हुए मानवीय गुणों का विकास करते हैं, धर्मावलम्बी संगठित रूप में तीसरे वर्ग का शोषण करते हुए वैभव भोगते हैं और अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करते हुए समाज को भ्रमित एवं ईश्वर के नाम से आतंकित करने एवं रखने हेतु नए नए मार्ग खोजते हैं. तीसरा वर्ग वस्तुतः शोषित है और असमंजस में है, वह कर्म करता है अपनी आजीविका हेतु किनता इससे प्राप्तियों का बहुलांश संगठित धर्मावलम्बी हड़प लेते हैं आजीविका के संकट से तृस्त यह वर्ग आतंकित भी है और अचिंतन के अन्धकार में निमग्न भी. चूंकि यह समाज का बहुत बड़ा अंश है, इसलिए इसी की स्थिति को समाज की सामान्य स्थिति माना जा सकता है.
समाज का शोषित तीसरा अंश पूरी तरह निर्धन नहीं है, इसमें अनेक धनवान भी सम्मिलित हैं किन्तु ये बौद्धिक कंगाल हैं क्योंकि ये तो यह भी नहीं जानते कि कितना कमाएं और किसलिए. कमाई की अनंत यात्रा पर बस चलते रहते हैं - धनवान होते हुए भी अनंत धन-सम्पदा की कामना लिए हुए अपनी कमाई कोई सदुपयोग भी नहीं कर पाते. संगठित धर्मावलम्बी इन्ही की अज्ञानता, अचिंतन और सम्पन्नता का शोषण करते हुए वैभवपूर्ण जीवन जीते हैं.