बौद्धिक लोगों के सत्तारोहण हेतु उनका परस्पर समन्वय आवश्यक है, जिसके लिए परस्पर सहमत व्यक्तियों का एक दूसरे से परिचय भी आवश्यक है. ऐसे लोगों का प्रायः अकस्मात् आमना-सामना होता रहता है किन्तु वे एक दूसरे को पहचान नहीं पाते. हमें ऐसे उपाय विकसित एवं प्रचारित करने होंगे जिनसे ऐसे व्यक्ति एक दूसरे को देखते ही पहचान लें.
ऐसे बहुत से औपचारिक संगठन हैं जो अपने सदस्यों से एक विशेष वेशभूषा अथवा कोई अन्य प्रतीक चिन्ह अपनाने का आग्रह करते हैं जिसके माध्यम से वे एक दूसरे को पहचान सकें. किन्तु बौद्धिक लोगों का अभी कोई संगठन नहीं है और न ही इसकी तुरंत आवश्यकता है. वास्तव में किसी औपचारिक संगठन की तभी आवश्यकता होती है जब उसके सदस्यों की संख्या को औपचारिक संगठन व्यवस्था की आवश्यकता अनुभव होने लगे. प्रायः कुछ स्वयंभू व्यक्ति अपने संगठन बनाते हैं, और स्वयं उसके पदाधिकारी बन बैठते हैं. इसके बाद वे अन्य लोगों से आग्रह करते हैं कि वे उनके संगठन में प्रवेश कर उनके अनुयायी बनें. ऐसे संगठन प्रायः असफल होते देखे गए हैं. हम बौद्धिक लोगों के संगठन की प्रक्रिया सदस्यता से आरम्भ करना चाहते हैं और उनकी संख्या पर्याप्त हो जाने के बाद ही उन सभी के सम्मलेन में संगठन के पदाधिकारियों का चुनाव किया जाना उचित मानते हैं.
आरम्भ में जो आवश्यकता है, वह है किसी ऐसे प्रतीक की जो विचारधारा से सहमत सभी व्यक्ति धारण करें ताकि उनका परस्पर सामना होने पर वे एक दूसरे से परिचय कर सकें. यह प्रतीक किसी विशेष रंग का कोई वस्त्र हो सकता है, कोई लोकेट हो सकता है, अथवा अभिवादन की कोई विशेष शैली हो सकती है. इनमें से सर्वसुलभ और सर्वसुलभ एक छोटा विशेष रंग का वस्त्र हो सकता है जिसे सहमत व्यक्ति अपने गले की टाई के रूप में, रूमाल के रूप में, सिर पर टोपी के रूप में, अथवा गले के स्कार्फ के रूप में धारण करें. इस वस्त्र का रंग हम अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से प्राप्त कर सकते हैं.
भारत के देव और ग्रीस के फिलोस्फर विश्व इतिहास के सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्ति रहे हैं, और वे सभी गहरे लाल-नारंगी रंग का उत्तरीय वस्त्र धारण करते थे. इसी रंग को अपनाना हमारे लिए भी उपयुक्त है. इसी के माध्यम से हम एक दूसरे से वैचारिक निकटता को व्यक्त करते हुए भौतिक निकटता स्थापित कर सकते हैं.
बुधवार, 19 मई 2010
मंगलवार, 18 मई 2010
आद्य
दा
दीक्षित
आदित्य
सोमवार, 17 मई 2010
जनसामान्य की मानसिकता
अभी विगत कुछ दिनों में मुझे अपने गाँव के जनसामान्य की मानसिकता का प्रत्यक्ष बोध हुआ जिसे में लघु स्तर पर पूरे भारत के जनसामान्य की मानसिकता का प्रतिबिम्ब मानता हूँ. जैसा कि मैं इसी संलेख पर पहले घोषित कर चुका हूँ कि मैंने अनेक लोगों के बार-बार आग्रह पर गाँव के प्रधान पद हेतु चुनाव लड़ने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी थी, जो मेरी इच्छा के विरुद्ध है तथापि गाँव के हित में मैंने इसे स्वीकार कर लिया था -
१९९५ में ५ वर्ष के लिए जो व्यक्ति गाँव प्रधान चुना गया था उसे भृष्ट आचरण के कारण तीसरे वर्ष में ही प्रशासन ने प्रधान पद से मुक्त कर दिया था. २००० में जो व्यक्ति प्रधान बना वह बेहद शराबी है और भृष्ट आचरण में लिप्त रहा था, उसे भी मध्यावधि में कुछ समय के लिए पदमुक्त किया गया था. सन २००५ में जो व्यक्ति प्रधान बना वह शराबी होने के साथ-साथ निरक्षर भी है. उसने लोगों की चापलूसी करते हुए ही बिना कोई विशेष विकास कार्य किये अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर लिया है. इन सभी ने क्रमशः अधिकाधिक दान व्यय करके प्रधान पद पाया था. इस १५ वर्ष की अवधि में गाँव में हत्याएं, लूट-पाट, चोरी आदि की घटनाएं होती रहीं हें जिनके कारण स्थानीय पुलिस द्वारा अनेक निर्दोष लोगो को अनावश्यक रूप से सताया गया है. गाँव की कोई भी समस्या बिना दलाली और रिश्वतखोरी के बिना सुलझ नहीं पाई है. इन सब कारणों से ही गाँव के कुछ लोगों ने मुझसे प्रधान बनकर गाँव का विकास करने और गाँव की स्थिति में सुधार करने का आग्रह किया जिसे मैंने अंतरिम रूप में स्वीकार कर लिया था किन्तु यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं इस पद को पाने के लिए कोई धन व्यय नहीं करूंगा. इसके विपरीत मेरे तीन प्रमुख प्रतिद्वंदी इस पद के लिए २ से ४ लाख रुपये व्यय करने की घोषणाएँ कर चुके हैं.
चुनाव होने में अभी चार माह का समय लगेगा जिसके लिए मैंने अपनी मानसिक तैयारी के अतिरिक्त गाँव के लोगों की मानसिकता का आकलन किया. स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की मानसिकता का भी अध्ययन किया क्योंकि मेरे लिए यह जानना आवश्यक है कि वे बिना किसी भृष्ट आचरण के मुझे अपना कार्य करने देंगे अथवा नहीं. मैंने पाया कि अधिकारी वर्ग अपनी आजीविका के बारे में चिंतित रहता है इसलिए उसे पूरी ईमानदारी और कठोरता दर्शाने पर उसके आचरण में सुधार किया जा सकता है. किन्तु गाँव के लोगों के, जिन्हें गरीब और निस्सहाय समझा जाता है, भृष्ट आचरण में सुधार करना मेरे लिए दुष्कर है.
लगभग ५ वर्षों से मैं गाँव में विद्युत् उपकरणों की देखरेख और विद्युत् उपलब्धि के बारे में संघर्ष करता रहा हूँ, जिसके परिनान्स्वरूप पर्याप्त सुधार हुए हैं. साथ ही इसके कारण विद्युत् अधिकारियों ने विद्युत् चोरी पर भी रोल लगाई है जिसका आरोप भी लोग मुझी पर लगाते हैं और मेरे विरुद्ध ४० वर्षों से चली आ रही विद्युत् चोरी की परम्परा को तोड़ने के लिए दुष्प्रचार किया जा रहा है.
मेरे चीफ इंजीनियर पद पर रहने के कारण गाँव के बहुत से लोग समझते हैं कि मैं बहुत धनवान हूँ और मेरे बच्चों के प्रतिष्ठित होने के कारण भी लोग समझते हैं कि मेरे पास धनाभाव नहीं है. जबकि मैं गाँव के एक साधारण व्यक्ति की भांति ही रहता हूँ और कदापि धनवान नहीं हूँ. प्रधान पद पाने की मेरी स्वीकृति के बाद अनेक लोगों ने मुझपर शराब और अन्य प्रकार की दावतें देने के लिए दवाब देना आरम्भ किया जो मैं कठोरता से निरस्त करता रहा. मेरे इस रुख से अनेक लोग मुझसे रुष्ट हो गए.
गाँव की लगभग ५० बीघा भूमि ग्रामसभा के स्वामित्व में है जो सभी अनधिकृत रूप से निजी अधिकारों में ले ली गयी है. ऐसा विगत २० वर्षों से हो रहा है, किन्तु किसी प्रधान ने इसे वापिस प्राप्त कर इसके सदुपयोग करने के प्रयास नहीं किये. यहाँ तक कि भूमि उपलब्ध न होने के कारण गाँव में राजकीय सहायता से उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण नहीं हो सका है, और गाँव में बच्चों के खेलने के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं है. गाँव के निर्धन वर्ग को आशा है कि मैं इस भूमि को निजी अधिकारों से मुक्त करा उन्हें अधिकृत उपयोग के लिए आबंटित कर सकूंगा, तथा स्कूल आदि का निर्माण करा सकूंगा. मैंने इसकी अनौपचारिक घोषणा भी कर दी. इससे वे लोग मुझसे रुष्ट हो गए जो इस भूमि पर अधिकार किये हुए हैं तथापि निर्धन वर्ग प्रसन्न हुआ.
मुझे गाँव का भावी प्रधान समझते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने अनधिकृत रूप में मुझसे गाँव के २० ऐसे लोगों की सूची माँगी जिन्हें आवासीय भवन की समस्या है ताकि उन्हें राज्य की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जा सके. सबसे पहले तो मेरे एक निकट सहयोगी और आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति ने अपने उस भाई के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जो विगत ६ वर्षों से न तो गाँव में रहता है और न ही कभी यहाँ आता है. इस सुझाव के मेरे द्वारा निरस्त किये जाने पर वह मुझसे रुष्ट हो गया. इससे मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे कुछ सहयोगी मुझे क्यों इस पद पर बैठाना चाहते हैं.
मैंने गाँव के निर्धन वर्ग को आवासीय सहायता की सूचना दी तथा जिस किसी से भी इसके बारे में आवासविहीन व्यक्ति का नाम पूछा उसने स्वयं का नाम ही प्रस्तावित किया. उसके आवास को देखने पर मुझे वह संतोषजनक लगा तथा जो कुछ वर्ष पहले ही राजकीय सहायता से बनवाया गया था. ऐसे प्रस्तावों को निरस्त किये जाने पर वे सभी मुझसे रुष्ट हो गए, क्योंकि वे इसके आदि हैं और उन्हें बार-बार ऐसी सहायता दी जाती रही हैं तथा उनसे रिश्वत ली जाती रही है. कई दिन तक प्रयास करने पर मैं पूरे गाँव में केवल १२ ऐसे व्यक्ति खोज पाया जिन्हें आवासीय समस्या है. मैंने उनके नाम अधिकारियों को सौंप दिए किन्तु इस प्रक्रिया में गाँव के बहुत से लोगों को रुष्ट कर दिया.
अपने बारे में आकलन के लिए कल मैंने गाँव के ५० प्रमुख व्यक्तियों की एक मीटिंग बुलाई थी जिन में अधिकाँश वे व्यक्ति सम्मिलित थे जो मुझसे यह पद स्वीकार करने का आग्रह करते रहे थे. इनमें से केवल २० व्यक्ति ही मीटिंग में उपस्थित हुए. इनमें कुछ अपने स्वार्थों की आपूर्ति के लिए उपस्थित ते तो कुछ अन्य इस आशा में थे कि मेरे यहाँ भव्य दावत होगी. मैंने केवल संतरे के पेय से उनका स्वागत किया, इससे कुछ असंतुष्ट हो गए.
आज प्रातः मैं उन लोगों से मिला जो मीटिंग में उपस्थित नहीं हे थे और उनसे अनुपस्थिति का कारण पूछा. मुझे ज्ञात हुआ कि उनमें से अधिकाँश मुझसे उपरोक्त किसी न किसी कारण से रुष्ट हैं. इस पर मैंने प्रधान पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय रद्द कर दिया.
"मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर, आदमी जिसमें रहे बस आदमी बनकर."
१९९५ में ५ वर्ष के लिए जो व्यक्ति गाँव प्रधान चुना गया था उसे भृष्ट आचरण के कारण तीसरे वर्ष में ही प्रशासन ने प्रधान पद से मुक्त कर दिया था. २००० में जो व्यक्ति प्रधान बना वह बेहद शराबी है और भृष्ट आचरण में लिप्त रहा था, उसे भी मध्यावधि में कुछ समय के लिए पदमुक्त किया गया था. सन २००५ में जो व्यक्ति प्रधान बना वह शराबी होने के साथ-साथ निरक्षर भी है. उसने लोगों की चापलूसी करते हुए ही बिना कोई विशेष विकास कार्य किये अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर लिया है. इन सभी ने क्रमशः अधिकाधिक दान व्यय करके प्रधान पद पाया था. इस १५ वर्ष की अवधि में गाँव में हत्याएं, लूट-पाट, चोरी आदि की घटनाएं होती रहीं हें जिनके कारण स्थानीय पुलिस द्वारा अनेक निर्दोष लोगो को अनावश्यक रूप से सताया गया है. गाँव की कोई भी समस्या बिना दलाली और रिश्वतखोरी के बिना सुलझ नहीं पाई है. इन सब कारणों से ही गाँव के कुछ लोगों ने मुझसे प्रधान बनकर गाँव का विकास करने और गाँव की स्थिति में सुधार करने का आग्रह किया जिसे मैंने अंतरिम रूप में स्वीकार कर लिया था किन्तु यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं इस पद को पाने के लिए कोई धन व्यय नहीं करूंगा. इसके विपरीत मेरे तीन प्रमुख प्रतिद्वंदी इस पद के लिए २ से ४ लाख रुपये व्यय करने की घोषणाएँ कर चुके हैं.
चुनाव होने में अभी चार माह का समय लगेगा जिसके लिए मैंने अपनी मानसिक तैयारी के अतिरिक्त गाँव के लोगों की मानसिकता का आकलन किया. स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की मानसिकता का भी अध्ययन किया क्योंकि मेरे लिए यह जानना आवश्यक है कि वे बिना किसी भृष्ट आचरण के मुझे अपना कार्य करने देंगे अथवा नहीं. मैंने पाया कि अधिकारी वर्ग अपनी आजीविका के बारे में चिंतित रहता है इसलिए उसे पूरी ईमानदारी और कठोरता दर्शाने पर उसके आचरण में सुधार किया जा सकता है. किन्तु गाँव के लोगों के, जिन्हें गरीब और निस्सहाय समझा जाता है, भृष्ट आचरण में सुधार करना मेरे लिए दुष्कर है.
लगभग ५ वर्षों से मैं गाँव में विद्युत् उपकरणों की देखरेख और विद्युत् उपलब्धि के बारे में संघर्ष करता रहा हूँ, जिसके परिनान्स्वरूप पर्याप्त सुधार हुए हैं. साथ ही इसके कारण विद्युत् अधिकारियों ने विद्युत् चोरी पर भी रोल लगाई है जिसका आरोप भी लोग मुझी पर लगाते हैं और मेरे विरुद्ध ४० वर्षों से चली आ रही विद्युत् चोरी की परम्परा को तोड़ने के लिए दुष्प्रचार किया जा रहा है.
मेरे चीफ इंजीनियर पद पर रहने के कारण गाँव के बहुत से लोग समझते हैं कि मैं बहुत धनवान हूँ और मेरे बच्चों के प्रतिष्ठित होने के कारण भी लोग समझते हैं कि मेरे पास धनाभाव नहीं है. जबकि मैं गाँव के एक साधारण व्यक्ति की भांति ही रहता हूँ और कदापि धनवान नहीं हूँ. प्रधान पद पाने की मेरी स्वीकृति के बाद अनेक लोगों ने मुझपर शराब और अन्य प्रकार की दावतें देने के लिए दवाब देना आरम्भ किया जो मैं कठोरता से निरस्त करता रहा. मेरे इस रुख से अनेक लोग मुझसे रुष्ट हो गए.
गाँव की लगभग ५० बीघा भूमि ग्रामसभा के स्वामित्व में है जो सभी अनधिकृत रूप से निजी अधिकारों में ले ली गयी है. ऐसा विगत २० वर्षों से हो रहा है, किन्तु किसी प्रधान ने इसे वापिस प्राप्त कर इसके सदुपयोग करने के प्रयास नहीं किये. यहाँ तक कि भूमि उपलब्ध न होने के कारण गाँव में राजकीय सहायता से उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण नहीं हो सका है, और गाँव में बच्चों के खेलने के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं है. गाँव के निर्धन वर्ग को आशा है कि मैं इस भूमि को निजी अधिकारों से मुक्त करा उन्हें अधिकृत उपयोग के लिए आबंटित कर सकूंगा, तथा स्कूल आदि का निर्माण करा सकूंगा. मैंने इसकी अनौपचारिक घोषणा भी कर दी. इससे वे लोग मुझसे रुष्ट हो गए जो इस भूमि पर अधिकार किये हुए हैं तथापि निर्धन वर्ग प्रसन्न हुआ.
मुझे गाँव का भावी प्रधान समझते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने अनधिकृत रूप में मुझसे गाँव के २० ऐसे लोगों की सूची माँगी जिन्हें आवासीय भवन की समस्या है ताकि उन्हें राज्य की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जा सके. सबसे पहले तो मेरे एक निकट सहयोगी और आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति ने अपने उस भाई के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जो विगत ६ वर्षों से न तो गाँव में रहता है और न ही कभी यहाँ आता है. इस सुझाव के मेरे द्वारा निरस्त किये जाने पर वह मुझसे रुष्ट हो गया. इससे मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे कुछ सहयोगी मुझे क्यों इस पद पर बैठाना चाहते हैं.
मैंने गाँव के निर्धन वर्ग को आवासीय सहायता की सूचना दी तथा जिस किसी से भी इसके बारे में आवासविहीन व्यक्ति का नाम पूछा उसने स्वयं का नाम ही प्रस्तावित किया. उसके आवास को देखने पर मुझे वह संतोषजनक लगा तथा जो कुछ वर्ष पहले ही राजकीय सहायता से बनवाया गया था. ऐसे प्रस्तावों को निरस्त किये जाने पर वे सभी मुझसे रुष्ट हो गए, क्योंकि वे इसके आदि हैं और उन्हें बार-बार ऐसी सहायता दी जाती रही हैं तथा उनसे रिश्वत ली जाती रही है. कई दिन तक प्रयास करने पर मैं पूरे गाँव में केवल १२ ऐसे व्यक्ति खोज पाया जिन्हें आवासीय समस्या है. मैंने उनके नाम अधिकारियों को सौंप दिए किन्तु इस प्रक्रिया में गाँव के बहुत से लोगों को रुष्ट कर दिया.
अपने बारे में आकलन के लिए कल मैंने गाँव के ५० प्रमुख व्यक्तियों की एक मीटिंग बुलाई थी जिन में अधिकाँश वे व्यक्ति सम्मिलित थे जो मुझसे यह पद स्वीकार करने का आग्रह करते रहे थे. इनमें से केवल २० व्यक्ति ही मीटिंग में उपस्थित हुए. इनमें कुछ अपने स्वार्थों की आपूर्ति के लिए उपस्थित ते तो कुछ अन्य इस आशा में थे कि मेरे यहाँ भव्य दावत होगी. मैंने केवल संतरे के पेय से उनका स्वागत किया, इससे कुछ असंतुष्ट हो गए.
आज प्रातः मैं उन लोगों से मिला जो मीटिंग में उपस्थित नहीं हे थे और उनसे अनुपस्थिति का कारण पूछा. मुझे ज्ञात हुआ कि उनमें से अधिकाँश मुझसे उपरोक्त किसी न किसी कारण से रुष्ट हैं. इस पर मैंने प्रधान पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय रद्द कर दिया.
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