भारत के एक प्रसिद्ध कवि द्वारा रचित दोहा है -
'अति का भला न बरसना अति की भली न धूप,
अति का भला न बोलना अति की भली न चूप.'
किन्तु भारत के किसानों ने इससे कोई सीख नहीं ली और जब कोई फसल उगाते हैं तो सभी उगाते हैं. इस बार प्रत्येक किसान गन्ने की फसल बो रहा है और वह भी अधिकतम संभव भूमि पर. इसके फलस्वरुप मक्की और धान की फसल नगण्य बोई जायेगी. मेरे गाँव में सभी किसानों ने धान की फसल बोई थी जिसके कारण कुछ समय तो धान के भाव ठीक रहे किन्तु अब धराशायी हो गए.
गन्ने की फसल पर जोर होने का कारण विगत काल में गन्ने के भाव पिछले साल के ११० रुपये प्रति कुंतल के स्थान पर २५० रपये प्रति कुंतल होना है. इस वृद्धि में कुछ पहल सर्वकार ने की थी तो शेष निजी क्षेत्र के चीनी मीलों ने पूरी कर दी. इससे चीनी मीलों को कोई हानि नहीं हुई क्योंकि उन्होंने अपनी चीनी २० रुपये प्रति किलोग्राम के स्थान पर ४० रुपये प्रति किलोग्राम पर विक्रय करा दी. इसका अप्रत्याशित भार उपभोक्ताओं पर पडा जिससे उन्हें शक्कर की कड़वाहट अनुभव हुई.
गन्ने की खेती करने की विशेषता यह है कि किसान इसकी बुवाई एक दूसरे के खेतों में मिलजुलकर बिना पारिश्रमिक लिए करते हैं, जिसके बदले में खेत का स्वामी श्रमदान करने वालों को दावत देता है. इस कार्य में बच्चे बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं जो बड़ी संख्या में गन्ना बोने में सहयोग कर रहे हैं आर दावतें खा रहे हैं. इस समय गाँव में दावतों का दौर चल रहा है. यद्यपि मैं किसान नहीं हूँ किन्तु गाँव वाले मुझ से भी श्रमदान करा रहे हैं और दावत खिला रहे हैं. लगभग ५० वर्ष पहले ऐसी दावतों में कढी-फुलका तथा दाल-चावल हुआ करते थे किन्तु अब खीर-पूड़ी का प्रचलन है. खीर तो स्वादिष्ट होती है और कोई विकार भी उत्पन्न नहीं करती किन्तु इसकी सहभागिनी पूड़ियाँ तैलयुक्त होने के कारण पेट की व्याधियां उत्पन्न करती हैं.
प्रायः किसान के फसल पकाने के समय उत्पाद के भाव कम होते हैं जो व्यापारियों द्वारा बाद में बढ़ा दिए जाते हैं. किन्तु धान के बारे में इस बार ऐसा नहीं हुआ. जो धान फसल के समय ३५ रपये प्रति किलोग्राम से विक्रय हो रहा था वह अब १८ रुपये पर पहुँच गया है. अतः जिन किसानों ने अपना धान नहीं बेचा था वे अब बर्बादी अनुभव कर रहे हैं. यह किसी भी दृष्टि से प्राकृत नहीं है अतः कृत्रिम है तथा इसके पीछे कोई षड्यंत्र है. ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों को धान की फसल से विमुख कर गन्ने की फसल बोने के लिए प्रेरित करने के उद्येश्य से ऐसा किया गया है. गन्ने की अधिकता होने से गन्ना मीलों की क्षमता कम रहेगी जिससे किसानों को गन्ना सस्ती दरों पर देने की विवशता हो जायेगी. ८० के दशक में भी ऐसा हुआ था जब किसानों द्वारा गन्ने की फसल को खेतों में ही जलाना पडा था. धान आदि की फसल की अधिकता होने से उसे भविष्य के लिए भंडारित किया जा सकता है अथवा निर्यात किया जा सकता है किन्तु गन्ने की फसल न तो निर्यात की जा सकती है और ना ही इसे भविष्य के लिए भंडारित रखा जा सकता है. अतः इस बार गन्ने की अधिकता किसानों के लिए संकट का कारण बन सकती है.
गन्ने की फसल की अधिकता का दुष्प्रभाव दूसरी फसलों जैसे गेंहू, मक्की, धान, aadi का अभाव होगा जिससे इन आवश्यक वस्तुओं के मूल्य भी बढ़ेंगे. इस प्रकार एक विसंगति अनेक विसंगतियों को जन्म देगी जिसकी ओर किसानों अथवा सर्वकार का कोई ध्यान नहीं है.
रविवार, 9 मई 2010
उप
वराह, वराहावतार
वराह शब्द से ही 'वराहावतार' शब्द बना है जिसका अर्थ 'समुद्र अथवा नदी को पार कर जाने वाला व्यक्ति' है क्योंक कि 'अवतार' का अर्थ 'पराजित करने वाला' व्यक्ति है.
अवतार
शनिवार, 8 मई 2010
शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप
देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
शास्त्रीय व्यक्तित्व और उनके बहुरूप
देवों द्वारा भारत भूमि के विकास की उत्कंठा और यवन-यहूदी-द्रविड़-असुर, आदि के समूह, जिसे हम 'यवन' समूह कहते हैं, द्वारा व्यवधान डालकर भारत पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के संघर्ष में देव जनसँख्या का बहुत ह्रास किया गया था. कंस, कीचक, जरासंध, आदि अनेक देव योद्धा कृष्ण की कुटिलता से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. ऐसी स्थिति में अल्पसंख्य देवों द्वारा बहुसंख्य यवनों से संग्राम करना दुष्कर हो गया था.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
देव भारतभूमि की संतान थे जबकि यवन समूह बाहर से आया था. देव नहीं चाहते ते कि भारत भूमि पर किसी बाह्य शक्ति का अधिकार हो, इसलिए वे किसी बाह्य शक्ति को अपने सहयोग हेतु आमंत्रित भी नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने एक नया तरीका अपनाया. प्रत्येक प्रमुख व्यक्ति विभिन्न समयों पर भिन्न रूप धारण करता और यवनों के साथ संघर्ष करता. इस के कारण यवनों को देवों के अल्पसंख्य होने का आभास नहीं हो पाता था और उनका मनोबल बढ़ नहीं पाता था.
इस प्रकार के छद्म रूप धारण करने का एक दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक था. जिस व्यक्ति के बारे में ज्ञान हो उससे युद्ध करना सरल होता है जबकि अज्ञात शत्रु प्रबल माना जाता है. छद्म रूप धारण करके देव यवनों के लिए अज्ञात बन जाते थे और उनसे युद्ध किया करते थे. इस क्रम में सर्वाधिक रूप भरत, जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, ने धारण किये. वे छद्म रूपों की रचना के विशेषज्ञ भी थे. उन्होंने जो अनेक रूप धारण किये उनमें प्रमुख रूप हनुमान, परशुराम, सूर्यावतार, शिव, आदि नौ रूप धारण किये.
भरत ने ही जीसस ख्रीस्त को हाथी की मुखाकृति से आवृत कर उन्हें गणेश का रूप प्रदान किया ताकि वे यवनों की दृष्टि से ओझल होकर लेखन कार्य कर सकें. भरत ने ही शिव के रूप में गणेश को अपना पुत्र बनाकर रखा. देवियों में जीसस की बड़ी बहिन मरियम विष्णु से विवाह कर लक्ष्मी, दुर्गा और काली के रूप धारण किया करती थीं. लक्ष्मी के रूप में विष्णुप्रिया कहलाती थीं तथा दुर्गा एवं काली रूपों में वे शत्रुओं का संहार किया करती थीं. आधुनिक भारत में भी गणेश और लक्ष्मी का पूजन साथ-साथ किया जाता है जो उनके भाई-बहिन के सम्बन्ध को दर्शाता है.
ब्रह्मा (राम) के अनुज विष्णु (लक्ष्मण) ने भी दो प्रसिद्ध रूप धारण किये थे. महाभारत युद्ध के लिए देवों की शक्ति अपर्याप्त होने के कारण उन्होंने आर्य सम्राट डरायस -२ (दुर्योधन) को भारत में सेना सब्गठित कर यवनों से युद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और स्वयं उसके मामा शकुनि के छद्म रूप में महाभारत युद्ध के नीतिकार बने रहे. इस युद्ध में पराजित होकर उन्होंने विष्णु गुप्त चाणक्य के रूप में महापद्मानंद का वध नियोजित किया और अपने पुत्र चन्द्र गुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाया.
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