अधिकाँश मनुष्य खुशियों की खोज में और उन्हें पाने में अपना जीवन लगा देते हैं अतः क्षण-प्रतिक्षण खुशियाँ खोजते अथवा पाते हुए एक अनंत यात्रा पर चलते रहते हैं, विराम अथवा विश्राम उन्हें प्राप्त नहीं होता. जो सुख पा लेता है, उसे विश्राम भी स्वतः प्राप्त हो जाता है क्योंकि उसे आगे कुछ खोजने की लालसा अथवा पाने की इच्छा नहीं रहती. इससे उसे स्थायी खुशी प्राप्त होती है. इस प्रकार, सुख से खुशियाँ निश्चित रूप से प्राप्त होती हैं, किन्तु खुशियों से सुख प्राप्ति सुनिश्चित नहीं होती.
खुशी का सुख से भिन्न होने का अर्थ यह नहीं है जीवन में खुशी का कोई महत्व नहीं है. प्रत्येक खुशी मनुष्य के मानसिक तथा शारीरिक तनाव को दूर करती है जिस से उसे स्वास्थ लाभ होता है. यदि कोई मनुष्य क्षण प्रति क्षण खुशी पाता रहे तो उसे अन्य किसी सुख की आवश्यकता ही नहीं रहती. सतत खुशियों का संचयन भी सुख ही होता है. अच्छा स्वास्थ एक सुख अवश्य है, किन्तु सुख स्वास्थ सुनिश्चित नहीं करता, जब कि प्रत्येक खुशी स्वास्थप्रद होती है.
मनुष्य को खुशी अनेक प्रकार से प्राप्त होती हैं - यथा विचित्र वस्तु देखकर, किसी का असामान्य व्यवहार देखकर, कल्पना करके अथवा काल्पनिक कथा जान कर, मनोरंजक चुटकला आदि सुनकर, आदि. किन्तु इन सबसे सुख प्राप्त नहीं होता. वस्तुतः खुशी अपने स्रोत में उपस्थित नहीं होती, इसे मनुष्य का मस्तिष्क स्रोत के किसी अवयव में खोज लेता है. इस खोज का स्रोत की वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता. उदाहरण के लिए मैथुन क्रिया खुशी के सर्वोच्च साधन मानी जाती है, किन्तु इसका यथार्थ स्त्री का गर्भ गृहण कराना भी होता है जो अनेक परिस्थितियों में अवांछित तथा दुखमय हो सकता है.