मैंने अपने इस ऐतिहासिक संलेख में अनेक स्तनों पर जोर देकर कहा है कि राम और कृष्ण समकालीन थे और इन दोनों के नेतृत्व में हुए संघर्ष को ही महाभारत कहा जाता है, यद्यपि शस्त्र युद्ध के पूर्व ही राम की हत्या किये जाने के कारण वे युद्ध में सम्मिलित नहीं थे. इसके प्रमाण स्वरुप 'राम' शब्द महाभारत ग्रन्थ के मूल वैदिक संस्कृत पाठ्य में अनेक स्थानों पर पाया जाता है किन्तु हिंदी अनुवादों में 'राम' के स्थान पर 'बलराम', 'परशुराम', आदि नाम देकर राम को महाभारत से पूर्णतः अनुपस्थित किया गया है, जो भारतीय जनमानस के विरुद्ध एक षड्यंत्र के अंतर्गत किया गया है.
इस षड्यंत्र का विशेष कारण यह है कि कृष्ण चरित्र की तुलना में राम का चरित्र अतिश्रेष्ठ रहा है और दोनों की तलना करने पर कोई भी व्यक्ति कृष्ण को ईश्वर का स्वरुप स्वीकार नहीं कर सकता था. इसलिए कृष्ण भक्तों ने, जो बहुल संख्या में थे, राम को महाभारत से अनुपस्थित कर दिया और सभी अनुवाद इसी षड्यंत्र के अंतर्गत किये गए.
महाभारत ग्रन्थ में ही एक प्रसंग राम और कृष्ण के समकालीन होने की स्पष्ट पुष्टि करता है. यहाँ महाभारत ग्रन्थ के गीताप्रेस गोरखपुर द्वार प्रकाशित हिंदी-अनुवाद सहित संस्करण संवत २०६५, चौदहवाँ पुनर्मुद्रण के प्रथम खंड, पृष्ठ ७५४ से आरम्भ, अध्याय ३१, 'सहदेव के द्वारा दक्षिण दिशा की विजय' प्रकरण में पृष्ठ ७५९ पर दिए गए श्लोक समूह ७३ में सहदेव के घटोत्कच के प्रति शब्दों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है -
'वत्स! तुम मेरी आज्ञा से कर लेने के लिए लंकापुरी में जाओ और वहां राक्षसराज महात्मा विभीषण से मिल कर राजसूय यज्ञ के लिए भांति-भांति के बहुत से रत्न प्राप्त करो. महाबली वीर! उनकी ओर से भेंट में मिली हुई सब वस्तुएं लेकर शीघ्र यहाँ लौट आओ. बेटा! यदि विभीषण तुम्हें भेंट न दें, तो उन्हें अपनी शक्ति का परिचय इस प्रकार कहना - 'कुबेर के छोटे भाई लंकेश्वर! कुंतीकुमार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण के बाहुबल को देखकर भाइयों सहित राजसूय यज्ञ आरम्भ किया है. आप इस समय इन बातों को अच्छी तरह जान लें. आपका कल्याण हो, अब मैं यहाँ से चला जाऊंगा.' इतना कहकर तुम शीघ्र लौट आना, अधिक विलम्ब मत करना.
इससे आगे के विवरण में विभीषण द्वारा घटोत्कच का स्वागत और उसे अनेक बहुमूल्य उपहार दिए जाने सम्मिलित हैं. इसी प्रसंग में यह भी उल्लिखित है कि सहदेव के पास द्रविड़ सेना थी. यद्यपि यह हिंदी अनुवाद दोषपूर्ण हो सकता है तथापि प्रसंग की उपस्थिति ही यह सिद्ध करती है कि महाभारत काल में विभीषण लंका के राजा थे जिनका राजतिलक राम द्वारा किया गया था. अतः राम और कृष्ण का समकालीन होना सिद्ध होता है.
यहाँ यह भी बाते दें कि इसी गीताप्रेस गोरखपुर के अनेक प्रकाशनों में राम को लाखों वर्ष पूर्व के त्रेता युग में, और कृष्ण को द्वापर युग में कहा गया है. यह सब सिद्ध करता है तथाकथित भारतीय विद्वान् केवल लकीर के फ़कीर हैं और वे तथ्यपरक शोध करने में असक्षम हैं.
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बुधवार, 28 अप्रैल 2010
राम आर कृष्ण की समकालीनता
मैंने अपने इस ऐतिहासिक संलेख में अनेक स्तनों पर जोर देकर कहा है कि राम और कृष्ण समकालीन थे और इन दोनों के नेतृत्व में हुए संघर्ष को ही महाभारत कहा जाता है, यद्यपि शस्त्र युद्ध के पूर्व ही राम की हत्या किये जाने के कारण वे युद्ध में सम्मिलित नहीं थे. इसके प्रमाण स्वरुप 'राम' शब्द महाभारत ग्रन्थ के मूल वैदिक संस्कृत पाठ्य में अनेक स्थानों पर पाया जाता है किन्तु हिंदी अनुवादों में 'राम' के स्थान पर 'बलराम', 'परशुराम', आदि नाम देकर राम को महाभारत से पूर्णतः अनुपस्थित किया गया है, जो भारतीय जनमानस के विरुद्ध एक षड्यंत्र के अंतर्गत किया गया है.
इस षड्यंत्र का विशेष कारण यह है कि कृष्ण चरित्र की तुलना में राम का चरित्र अतिश्रेष्ठ रहा है और दोनों की तलना करने पर कोई भी व्यक्ति कृष्ण को ईश्वर का स्वरुप स्वीकार नहीं कर सकता था. इसलिए कृष्ण भक्तों ने, जो बहुल संख्या में थे, राम को महाभारत से अनुपस्थित कर दिया और सभी अनुवाद इसी षड्यंत्र के अंतर्गत किये गए.
महाभारत ग्रन्थ में ही एक प्रसंग राम और कृष्ण के समकालीन होने की स्पष्ट पुष्टि करता है. यहाँ महाभारत ग्रन्थ के गीताप्रेस गोरखपुर द्वार प्रकाशित हिंदी-अनुवाद सहित संस्करण संवत २०६५, चौदहवाँ पुनर्मुद्रण के प्रथम खंड, पृष्ठ ७५४ से आरम्भ, अध्याय ३१, 'सहदेव के द्वारा दक्षिण दिशा की विजय' प्रकरण में पृष्ठ ७५९ पर दिए गए श्लोक समूह ७३ में सहदेव के घटोत्कच के प्रति शब्दों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है -
'वत्स! तुम मेरी आज्ञा से कर लेने के लिए लंकापुरी में जाओ और वहां राक्षसराज महात्मा विभीषण से मिल कर राजसूय यज्ञ के लिए भांति-भांति के बहुत से रत्न प्राप्त करो. महाबली वीर! उनकी ओर से भेंट में मिली हुई सब वस्तुएं लेकर शीघ्र यहाँ लौट आओ. बेटा! यदि विभीषण तुम्हें भेंट न दें, तो उन्हें अपनी शक्ति का परिचय इस प्रकार कहना - 'कुबेर के छोटे भाई लंकेश्वर! कुंतीकुमार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण के बाहुबल को देखकर भाइयों सहित राजसूय यज्ञ आरम्भ किया है. आप इस समय इन बातों को अच्छी तरह जान लें. आपका कल्याण हो, अब मैं यहाँ से चला जाऊंगा.' इतना कहकर तुम शीघ्र लौट आना, अधिक विलम्ब मत करना.
इससे आगे के विवरण में विभीषण द्वारा घटोत्कच का स्वागत और उसे अनेक बहुमूल्य उपहार दिए जाने सम्मिलित हैं. इसी प्रसंग में यह भी उल्लिखित है कि सहदेव के पास द्रविड़ सेना थी. यद्यपि यह हिंदी अनुवाद दोषपूर्ण हो सकता है तथापि प्रसंग की उपस्थिति ही यह सिद्ध करती है कि महाभारत काल में विभीषण लंका के राजा थे जिनका राजतिलक राम द्वारा किया गया था. अतः राम और कृष्ण का समकालीन होना सिद्ध होता है.
यहाँ यह भी बाते दें कि इसी गीताप्रेस गोरखपुर के अनेक प्रकाशनों में राम को लाखों वर्ष पूर्व के त्रेता युग में, और कृष्ण को द्वापर युग में कहा गया है. यह सब सिद्ध करता है तथाकथित भारतीय विद्वान् केवल लकीर के फ़कीर हैं और वे तथ्यपरक शोध करने में असक्षम हैं.
इस षड्यंत्र का विशेष कारण यह है कि कृष्ण चरित्र की तुलना में राम का चरित्र अतिश्रेष्ठ रहा है और दोनों की तलना करने पर कोई भी व्यक्ति कृष्ण को ईश्वर का स्वरुप स्वीकार नहीं कर सकता था. इसलिए कृष्ण भक्तों ने, जो बहुल संख्या में थे, राम को महाभारत से अनुपस्थित कर दिया और सभी अनुवाद इसी षड्यंत्र के अंतर्गत किये गए.
महाभारत ग्रन्थ में ही एक प्रसंग राम और कृष्ण के समकालीन होने की स्पष्ट पुष्टि करता है. यहाँ महाभारत ग्रन्थ के गीताप्रेस गोरखपुर द्वार प्रकाशित हिंदी-अनुवाद सहित संस्करण संवत २०६५, चौदहवाँ पुनर्मुद्रण के प्रथम खंड, पृष्ठ ७५४ से आरम्भ, अध्याय ३१, 'सहदेव के द्वारा दक्षिण दिशा की विजय' प्रकरण में पृष्ठ ७५९ पर दिए गए श्लोक समूह ७३ में सहदेव के घटोत्कच के प्रति शब्दों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है -
'वत्स! तुम मेरी आज्ञा से कर लेने के लिए लंकापुरी में जाओ और वहां राक्षसराज महात्मा विभीषण से मिल कर राजसूय यज्ञ के लिए भांति-भांति के बहुत से रत्न प्राप्त करो. महाबली वीर! उनकी ओर से भेंट में मिली हुई सब वस्तुएं लेकर शीघ्र यहाँ लौट आओ. बेटा! यदि विभीषण तुम्हें भेंट न दें, तो उन्हें अपनी शक्ति का परिचय इस प्रकार कहना - 'कुबेर के छोटे भाई लंकेश्वर! कुंतीकुमार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण के बाहुबल को देखकर भाइयों सहित राजसूय यज्ञ आरम्भ किया है. आप इस समय इन बातों को अच्छी तरह जान लें. आपका कल्याण हो, अब मैं यहाँ से चला जाऊंगा.' इतना कहकर तुम शीघ्र लौट आना, अधिक विलम्ब मत करना.
इससे आगे के विवरण में विभीषण द्वारा घटोत्कच का स्वागत और उसे अनेक बहुमूल्य उपहार दिए जाने सम्मिलित हैं. इसी प्रसंग में यह भी उल्लिखित है कि सहदेव के पास द्रविड़ सेना थी. यद्यपि यह हिंदी अनुवाद दोषपूर्ण हो सकता है तथापि प्रसंग की उपस्थिति ही यह सिद्ध करती है कि महाभारत काल में विभीषण लंका के राजा थे जिनका राजतिलक राम द्वारा किया गया था. अतः राम और कृष्ण का समकालीन होना सिद्ध होता है.
यहाँ यह भी बाते दें कि इसी गीताप्रेस गोरखपुर के अनेक प्रकाशनों में राम को लाखों वर्ष पूर्व के त्रेता युग में, और कृष्ण को द्वापर युग में कहा गया है. यह सब सिद्ध करता है तथाकथित भारतीय विद्वान् केवल लकीर के फ़कीर हैं और वे तथ्यपरक शोध करने में असक्षम हैं.
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