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बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली

बौद्धिक जनतंत्र संसदीय शासन प्रणाली को नकारते हुए राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली का पक्षधर है, जिसमें जनता सीधे एक व्यक्ति को अपना शासक चुनती है. इसके पक्ष में निम्नांकित तर्क दिए जा सकते हैं -
  1. संसदीय शासन प्रणाली में शासन का दायित्व शासक दल के एक चुने गए समूह का होता है न कि किसी एक व्यक्ति का. शासन एक बहुआयामी जटिल कार्य है, इसमें भूल-चूक, छल-कपट, आदि के पर्याप्त अवसर उपस्थित रहते हैं. शासित लोगों को इनसे उत्पन्न कठिनाइयों के लिए किसी एक व्यक्ति तो उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, जिसे दोषी वा निर्दोष सभी एक समान प्रतीत होने लगते हैं और दोषी भी निर्दोषों की छाया में छिप जाते है. 
  2. राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली में सभी अच्छाइयों और बुराइयों का दायित्व राष्ट्राध्यक्ष का होता है और उसे शासितों की किसी भी कठिनाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और दंड भी दिया जा सकता है. इससे शासन में गुणात्मक पक्ष को बल मिलाता है, जो सर्वदा वांछनीय है.
  3. जनता के समक्ष क्षेत्रानुसार अनेक सदस्य चुनने होते हैं जिनमें अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के चुने जा सकते हैं. मतदाता भी इस पर विशेष ध्यान इसलिए नहीं देते कि वे नहीं जानते कि उनके द्वारा चुने गए व्यक्ति की भावी भूमिका क्या होगी जिससे बुरे व्यक्तियों के चुने जाने की संभावना बढ़ जाती है. अंततः शासन में इनकी सीधी भागीदारी न होने पर भी ये शनैः-शनैः शक्तिशाली होते जाते हैं और एक दिन सत्ता पर अधिकार कर लेते हैं. 
  4. राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली में मतदाता स्पष्ट रूप से जानते हैं कि वे अपने राष्ट्र के लिए शासक चुन रहे हैं, और अपने दायित्व के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में सही व्यक्ति के राष्ट्राध्यक्ष चुने जाने की संभावना अधिक हो जाती है.
  5. संसदीय शासन प्रणाली में जनता शासक न चुनकर अपने प्रतिनिधि चुनती है तदुपरांत प्रतिनिधि शासक दल चुनते हैं. इस प्रकार शासक का चुनाव सीधा न होकर अदृश्य होता है और शासन गलत लोगों के हाथ में जाने की संभावना बढ़ती है, जबकि राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली में शासक का सीधा चुनाव होने से अच्छे व्यक्ति के शासक चुने जाने की संभावना बहुत अधिक होती है.  
  6. स्वतंत्र भारत के जनतांत्रिक अनुभवों से ज्ञान हुआ है कि जन-प्रतिनिधि दल-बदल के घिनौने कृत्यों से जनता के द्वारा किये गए चुनाव को नकारने की सक्षमता रखते हैं, जिससे पूरा का पूरा जनतांत्रिक ढांचा बेईमानी प्रतीत होने लगता है. राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली में ऐसी कोई संभावना नहीं होती. 
उपरोक्त कारणों से बौद्धिक जनतंत्र का संवैधानिक ढांचा राष्ट्राध्यक्ष शासन प्रणाली के अनुसार बनाया गया है.यहाँ व्यक्ति और समूह के मनोवैज्ञानिक पक्ष को समझना भी प्रासंगिक है. व्यक्ति जब स्वयं उत्तरदायी होता है तो अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह सर्वोत्तम तरीके से करता है. किन्तु जब वह एक समूह का अंग होता है तो उसका व्यक्तिगत दायित्व कहीं हो जाता है और वह अनुत्तरदायी अनुभव करते हुए ऐसा ही होने की संभावना रखता है.