यज्ञ (यजन), याज्ञ (याजन), युग और योग, ये सभी सब्द संग्रहवाचक हैं अर्थात कुछ वस्तुओं को एक साथ जोड़ना. इन शब्दों का उस समय विकास हुआ जब मनुष्य जाती ने समाज बनाकर बस्तियों में रहना आरम्भ किया था. बसई में रहने को यज्ञ कहा गया क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्तियों का संग्रह होता है. इसी शब्द से याज्ञ शब्द उद्भूत हुआ है, तदनुसार इसका अर्थ बस्ती का निर्माण करना अथवा बसाना होता है.