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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

गुण - सत, रज, तम

 वेदों तथा शास्त्रों में 'गुण' शब्द ग्रीक भाषा के gonos से उद्भूत है जिसका अर्थ 'जन्म से स्रोत' से है. यह प्रायः वनस्पतियों के अध्ययन से सम्बन्ध रखता है, इसलिए इसका उपयोग उन वानस्पतिक अंगों के लिए किया गया है जिनसे नए पौधे उगाये जा सकते हैं. तदनुसार वनस्पतियों के तीन गुण होते हैं - सत, रज तथा तम.
सत शब्द लैटिन के sativus से उद्भूत है जिसका अर्थ बीज होता है. अतः जो वनस्पतियाँ बीजों के माध्यम से वंशवृद्धि करती हैं जैसे उन्हें सतोगुणी कहा गया है.  अधिकाँश वनस्पतियाँ बीजों से ही उगती हैं.
रज शब्द लैटिन के radix से उद्भूत है क्योंकि लैटिन वर्ण डी अनेक स्थानों पर ज का स्वर देता है. इसका अर्थ जड़ है. अतः जो पौधे जड़ों से उगाये जाते हैं, जैसे केला, हल्दी, अदरक, आदि उन्हें रजोगुणी कहा गया है.
तम शब्द लैटिन के stemma से उद्भूत है जिससे स्तम्भ भी बना है. इसका अर्थ तना होता है. गुलाब, गन्ना जैसे अनेक पौधे टनों से उगाई जाती हैं अतः उन्हें तमोगुणी कहा गया है.
वेदों तथा शास्त्रों के अनुवाद आधुनिक संस्कृत के आदार पर किये जाने के कारण गुण शब्द का अत्यधिक दुरूपयोग हुआ है. जिससे आयुर्वेद का मूल स्वरुप भी दूषित होने के कारण यह विज्ञानं निष्प्रभावी प्रतीत होने लगा है. अतः आधुनिक संस्कृत के माध्यम से वेदों शास्त्रों के अनुवाद कारण इस देश के लोगों के साथ अन्याय है जो एक षड्यंत्र के रूप में आरम्भ किया गया. आज तक किसी अन्य व्यक्ति ने इस षड्यंत्र को नहीं पहचाना. केवल श्री अरविन्द ने इसके संकेत अपनी पुटक वेद रहस्य में दिए थे जहाँ से मैंने प्रेरणा पायी, शोध किये और यह कार्य आगे बढाया.