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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

रोटी, कपड़ा और मकान से आगे

भारतीय जनतंत्र लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं - रोटी कपड़ा और मकान की सुविधाएँ प्रदान करने का वचन देता रहा है और इसमें भी असफल रहा है. देश में खाद्यान्नों का उत्पादन बाधा है किन्तु साथ ही रासायनिक खादों और कीत्नाशालों के अत्यधिक उपयोग से उनकी गुणता में भारी गिरावट आयी है. देश में कपडे की कोई कमी अब नहीं है किन्तु ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में लोग अभी भी निर्वस्त्र जीवन यापन कर रहे हैं. देश की ५० प्रतिशत से अधिक नगरीय जनसँख्या के पास अपने मकान नहीं हैं और वे पूंजीपतियों की दया पर किरायेदारों के रूप में अपने सर छिपाए हुए हैं. सम्पन्नाताओं के मध्य विपन्नताओं के प्रमुखतः दो स्रोत हैं - देश की प्राकृत संपदा भूमि पर निजी स्वामित्व, तथा देश की संपदा हड़पने में राजनेताओं एवं प्रशासकों का भृष्ट गठजोड़.

बौद्धिक जनतंत्र में इन दोनों विकारों के शमन के कारगर उपाय हैं - विशिष्ट भू-प्रबंधन के अंतर्गत भूमि पर निजी स्वामित्व की समाप्ति कर उसको सभी नागरिकों को यथावश्यकता उपलब्ध कराना तथा न्याय व्यवस्था के अंतर्गत शासक-प्रशासकों के भृष्ट आचरण को देशद्रोह की मान्या और इसके लिए मृत्यु दंड का प्रावधान.

रोटी, कपड़ा और मकान प्रदान कराना ही बौद्धिक जनतंत्र का लक्ष्य नहीं है. यह लोगों के स्वास्थ को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करता है और प्रत्येक नागरिक को अन्य सभी के समान निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करता है. इन प्रावधानों से देश के नागरिक स्वस्थ एवं प्रसन्न बनते हैं. इसके अतिरिक्त देश के नागरिकों को संपन्न बनाना बौद्धिक जनतंत्र की विशिष्टता है जिसके लिए सार्वजनिक सुविधाओं यथा  यातायात, विद्युत्, संचार आदि को सुचारू बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जिनके अंतर्गत सरकार स्वयं कोई व्यावसायिक गतिविधि न कर प्रत्येक गतिविधि को जनहित में नियमित करेगी.

बौद्धिक जनतंत्र विचारधारा में विशाल स्तर पर शहरीकरण मानवता के विरुद्ध अपराध है जिससे लोग निर्वासन के लिए विवश होते हैं तथा उनके मध्य आर्थिक विषमताएं विकसित होती हैं. वस्तुतः विशाल शहरीकरण पूंजीवादी व्यवस्था का पोषक है. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र गांवों के व्यापक विकास पर बल देता है और सीमित शहरीकरण भी इसी को पुष्ट करने के माध्यम के रूप में किया जाता है. प्रत्येक गाँव में सभी सरकारी सेवाएँ जनसेवकों के माध्यम से उपलब्ध करना भी इसी व्यवस्था का एक अंग है जिससे किसी भी नागरिक को स्थानीय कार्यालय के अतिरिक्त किसी अन्य राजकीय कार्यालय में जाने की आवश्यकता ही नहीं होगी. उन्हें सभी राजकीय सेवाएं ग्राम स्तर पर उपलब्ध कराना ग्राम-स्तरीय जनसेवकों का दायित्व होगा.