कृष्ण के जीवन का एक मात्र लक्ष्य भारत भूमि को अपने अधिकार में लेना था क्योंकि यहाँ विशाल समतल भूमि क्षेत्र था, पूरे क्षेत्र में प्राकृत जलधाराएँ थीं, भूमि उपजाऊ थी और खनिजों से संपन्न थी. इनके अतिरिक्त यहाँ के लोग सीधे सादे सरल स्वभाव के थे जिनपर सरलता से शासन किया जा सकता था. देवों ने यहाँ पर्याप्त विकास कार्य कर दिए थे जिससे शोषण के लिए पर्याप्त स्रोत उपलब्ध हो गए थे.
भारत में कृष्ण का जन्म यवन शक्ति के प्रतीक के रूप में कराया गया था. मूलतः एक छोटे से क्षेत्र आयोनिया (Ionia ) के लोगों को यवन कहा जाता था जो दूर दूर तक जा बसे थे और अपनी जाती का विस्तार कर रहे थे. प्लेटो भी इसी जाती का था जो ग्रीस के नगर राज्य अथेन्स में जा बसा था और भारत के विरुद्ध षड्यंत्र का रचयिता था. इसी ने एक यवन भ्रूण को बैंगनी रंग कर भारत में कृष्ण का जन्म प्रबंधित किया था जिससे कृष्ण बैंगनी रंग का एक मात्र व्यक्ति था. लैटिन भाषा में ion शब्द का अर्थ बैंगनी रंग है, इसीलिये कृष्ण का रंग बैंगनी रखा गया ताकि वह यवन शक्ति का परिचायक रहे.
अधिकार करने की इस महत्वाकांक्षी योजना में केवल एक बाधा थी - लोकप्रिय राम, परम बुद्धिमान विष्णु, परम बलशाली महेश्वर और कंस, जरासंध, कीचक आदि योद्धाओं की उपस्थिति. इसलिए कृष्ण के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह येन केन प्रकारेण इनका सफाया करे अथवा करवाए.
कृष्ण ने उस समय तक स्वयं को दिव्य सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रख छोडी थी किन्तु वह ब्रह्मा (राम) की तरह लोकप्रिय नहीं हो पाया था. कृष्ण निरक्षर था और उसकी शिक्षा-दीक्षा छल-कपटों तक सीमित थी, इसलिए वह विष्णु (लक्ष्मण) की बुद्धिमत्ता का सामना करने में भी असक्षम था. स्वयं को दिव्य सिद्ध बनाये रखने के किये वह स्वयं किसी से भी सीधे टकराव से बचता था अन्यथा पराजय उसकी दिव्यता की पोल खोल देती. इस कारण से वह स्वयं किसी युद्ध अथवा द्वन्द में भाग लेने से कतराता था जिससे वह स्वभावतः कायर बन गया था. इसलिए बलशाली और योद्धा देवों से भयभीत हो वह बचता ही रहता था, विशेषकर महेश्वर (भरत) से तो वह भयभीत ही रहता था. किन्तु उसकी महत्वाकांक्षा की आपूर्ति के लिए उसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, कंस, कीचक, जरासंध आदि देवों को अपने मार्ग से हटाना अनिवार्य था. उस समय मदुरै में कंस का शासन था और वहीं कृष्ण के यदुवंश का बाहुल्य था, इसलिए उसने सबसे पहले मदुरै पर अधिकार की योजना बनाई. श्रीमदभगवद-गीता की प्रस्तावना में कंस के वध का उल्लेख इस प्रकार है -
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम.
अर्थात - वसुदेव के रक्षक देव कंस के दोनों आणों (अन्डकोशों) को मसल दिया गया.
इसके बाद दक्षिण भारत पर कृष्ण का अधिकार हो गया और यही उसकी गतिविधियों का केंद्र बना. किन्तु वह उत्तरी क्षेत्र में आकर देव योद्धाओं से टकराने का साहस न कर सका.
इस कार्य के लिए उसने पांडवों को भारत बुलाया जो कुंती के साथ जंगल-जंगल भटक रहे थे. तीनों पांडव सरल स्वाभाव के तथा बहुत कुछ बुद्धिहीन थे. कृष्ण ने उन्हें भारत के शासन में भागे देने का वचन दिया और वे कृष्ण के छल में आगये. पांडवों में भीम सर्वाधिक बलशाली था इसलिए उसने भीम को ही देव योद्धाओं से एक-एक करके युक्तिपूर्वक भिड़ाया. भीम का बल और कृष्ण का छल अधिकांश देवों को पराजित करने में सफल रहे. इन वधों तथा हत्याओं से देवों की शक्ति क्षीण होने लगी.
देवों की इस दुर्बलता का पूरा लाभ उठाने के लिए उसने महाभारत युद्ध की योजना बनायी जो तत्कालीन विश्व के सभी योद्धाओं की हत्या की योजना थी. इस युद्ध के लिए उसने सिकंदर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया और पांडवों को राज्य में हिस्सा देने को कारण बनाया. उसके तर्क रखा कि कुंती का विवाह महेश्वर से हुआ था इसलिए उसके पुत्र पांडव महेश्वर के पुत्र हुए, जब कि वे कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं. .