वेदों तथा शास्त्रों में पाया जाने वाला आरती शब्द लैटिन भाषा के artis से उद्भूत है जिसका अर्थ 'कलात्मक कार्य' अथवा इनका किया जाना है. अतः यह शब्द किसी विशिष्ट व्यक्ति के सन्दर्भ में ही उपयुक्त हुआ है और वहाँ उस व्यक्ति की कलात्मकता अथवा उस द्वारा किये गए कलात्मक कार्यों का उल्लेख होता है.
आधुनिक संस्कृत में आरती का अर्थ सम्बंधित व्यक्ति की पूजा अर्चना लिया जाता है, जो वेदों-शास्त्रों के सन्दर्भ में त्रुटिपूर्ण है.