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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

यवन

 प्राचीन काल में एशिया माइनर में एक क्षेत्र का नान आयोनिया (Ionia) था और यहाँ के लोग यवन कहलाते थे. अत्यधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण धीरे धीरे ये लोग अन्य भू भागों पर भी फ़ैल गए और यवन जाति एक विशाल जाती और विशाल भू क्षेत्र की स्वामी बन गयी.इस जाती की वृद्धित शक्ति को देखते हुए अनेक अन्य छोटीचोटी जातियों ने भी स्वयं को यवन कहना आरम्भ कर दिया. यहाँ तक कि फिलिप और उसका पुत्र सिकंदर, जो मूलतः मेसिडोनिया क्षेत्र तथा डोरिस नगर के वासी होने के कारण मेसिडोन अथवा डोरियन थे, स्वों को यवन कहने लगे. यह संभव है कि इनके पूर्वज मूलतः आयोनिया के वासी रहे हों. फिलिप ने ग्रीस पर अपने अधिपत्य के बाद उस देश का नाम बदलकर यूनान कर दिया और वहन के सभी वासी यूनानी अथवा यवन कहलाने लगे.
यवन शब्द मूलतः लैटिन भाषा के शब्द ion से उद्भूत है जिसका अर्थ बैंगनी रंग होता है. भारत के देवों द्वारा विकास किये जाते समय यवनों ने ही इस पर अपना अधिपत्य ज़माने का प्रयास किया था जो एक षड्यंत्रपूर्ण विशाल एवं दीर्घगामी योजना थी. इसी योजना के अंतर्गत भारत में आकर बसे यहूदी परिवार में कृष्ण का कृत्रिम जन्म कराया गया. वस्तुतः एक यवन भ्रूण को बैंगनी रंग में रंगकर यहूदी स्त्री के गर्भ में आरोपित करके बैंगनी रंग के कृष्ण का जन्म कराया गया. उसका बैंगनी रंग कृत्रिम था क्योंकि किसी भी अन्य व्यक्ति का रंग कभी बैंगनी नहीं हुआ. बैंगनी रंग को यवन शक्ति के प्रतीक के रूप में उपयोग किया गया. 
इस प्रकार शास्त्रों में यवन शब्द दो अर्थों में उपयुक्त किया गया है - एक जाती के लिए, तथा दूसरा बैंगनी रंग के लिए. शास्त्र लिखे जाते समय शब्दों का बहुत अधिक विकास नहीं हुआ था, इसलिए शब्दों को अनेक अर्थों में उपयोग किया गया है. किन्तु इसके विपरीत एक ही अर्थ के लिए कदापि अनेक शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है.