अधिकाँश लोग अपनी वास्तविकताओं से दूर भागने के प्रयासों में अपने आदर्श की कल्पनाओं में निमग्न रहते हैं. यही उनके दुखों का कारण बनता है. शोधों में पाया गया है कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ अपनी वास्तविकता से अधिक असंतुष्ट रहती हैं. साथ ही यह भी पाया गया है कि पुरुषों के आदर्शों में स्त्रियों के आदर्शों की तुलना में अधिक भिन्नता होती है, जिसका अर्थ यह है कि पुरुष भिन्न प्रकार से सोचते हैं जब कि सभी स्त्रियाँ लगभग एक जैसा सोचती हैं. इसका अर्थ यह भी है कि पुरुष अपनी वास्तविकताओं से समझौता करने में अधिक निपुण होते हैं. फलस्वरूप पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ अधिक दुखी रहती हैं.
इसके निराकरण के दो उपाय हैं - अपनी वास्तविकता को ही अपना आदर्श बनाएं अथवा अपने आदर्श को अपनी वास्तविकता बनायें. सीधे रूप में ये दोनों प्रक्रियाएं ही दुष्कर प्रतीत होती हैं. इसका दूसरा उपाय अधिक व्यवहारिक है जो हमें पुरुष प्रकृति से प्राप्त होता है - अपने आदर्श को अधिकतम व्यापक बनाएं जिससे कि अधिकतर वास्तविकताएं इसके घेरे में आ जाएँ. प्राकृत रूप से पुरुष इसमें अधिक समर्थ होते हैं, स्त्रियों के लिए कुछ दुष्कर है. इसका कारण है स्त्रियों की सुकोमलता और उनमें समर्पण भाव का आधिक्य, जो दोनों ही सकारात्मक गुण हैं. अतः इन्हें भी निर्बल नहीं किया जाना चाहिए.
आदर्श प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं - मुझे कैसा बनना है, और मुझे क्या चाहिए. किन्तु दोनों का मूल पारस्परिक अनुकूलता है. अतः प्रत्येक व्यक्ति का आदर्श उसकी दूसरों से अनुकूलता द्वारा निर्धारित होता है. इसलिए आदर्श की व्यापकता के लिए हम सोचें कि हम किस-किस के अनुकूल हैं न कि हमारे अनुकूल कौन है और साथ ही हम अपनी अनुकूलता को अधिकाधिक व्यापक करें. अनुकूलता की व्यापकता चारित्रिक लचक प्रतीत होती है किन्तु यह उससे से भिन्न है. व्यक्ति अपने चरित्र और स्वभाव पर अडिग रहते हुए भी अपनी अनुकूलता को व्यापक कर सकता है, अधिकाधिक अध्ययन से - लोगों का, समाज का, वस्तुओं का, और सर्वोपरि स्वयं के व्यक्तित्व, जीवन शैली और बाहरी प्रस्तुति का.
व्यक्ति क्या है - एक शरीर और तदनुसार उसका मन, एक बुद्धि और तदनुसार उसका व्यवहार, एक संकल्प और तदनुसार उसके कार्य-कलाप, एक रूप और तदनुसार उसकी प्रभाविता, और एक सार्वभौमिक इच्छाशक्ति - जीवन का आनंद, आदि, आदि.. स्वयं का अध्ययन करें, अन्वेषण करें और अपने परिभाषा को व्यापक स्वरुप दें. आदर्श की व्यापकता के लिए इनमें से किसी को भी लचकदार बनाने की आवश्यकता नहीं है अपितु इन सभी के समावेश की आवश्यकता होती है.