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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

अफलातूनी कारनामा

आपने पढ़ा कि एक्रोपोलिस पर फिलिप ने आक्रमण कर नगर वासियों को वहां से खदेड़ उस पर अधिकार कर लिया. कैसे हुआ यह सब संपन्न, इस बारे में यहाँ पढ़िए.



उच्च कोटि के विद्वानों में सदैव यह कमी रही है कि उन्हें कोई भी सरलता से ठग सकता है. ऐसा ही हुआ सुकरात महोदय के साथ. अफलातून, जिसे अंग्रेजी में प्लेटो कहा जाता है, उनका शिष्य बन गया और नगर में अकादेमी नामक अपना स्कूल खोल लिया. इस स्कूल में खादिम तैयार किये जाते थे जो अफलातून के दिशा निर्देशों के अनुसार जान-समुदायों को भ्रमित करते थे. अकादेमी में ऐसे भ्रमों को जन्म देने और प्रसारित करने पर शोध किये जाते थे जिनके विवरण अगले अध्याय में दिए जायेंगे. 


अफलातून  बहुत महत्वाकांक्षी था और विश्व पर अपना शासन स्थापित करना चाहता था जिसका आरम्भ उसने अथेन्स से किया. अथेन्स की  जनतांत्रिक व्यवस्था का वह घोर विरोधी था और शासन का अधिकार केवल संभ्रांत लोगों को देना चाहता था. यहाँ रहते हुए उसने नगर राज्य के बारे में जानकारियाँ एकत्र  कीं और उनके आधार पर नगर पर आक्रमण करा उसे अपने अधिकार में लेने की योजना बनाई. इसके लिए उसने दोर्रिस नगर के जंगली शासक फिलिप को नगर पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया. इस आमंत्रण और तदनुसार ईसापूर्व ३३८ में आक्रमण द्वारा अच्रोपोल्स को पराजित किया गया जिसके कारण वे भारत पहुंचे. अफलातून ने ही अपने गुरु सुकरात - अंग्रेजी नाम सोक्रेटेस, शास्त्रीय नाम शुक्राचार्य - को विषपान करवाया.

अफलातून का एक विश्वसनीय शिष्य अरस्तु - अंग्रेजी नाम अरिस्तोतले - था. उधर फिलिप का एक पुत्र था जिसका नाम था सिकंदर - अंग्रेजी नाम अलेक्सान्दर. प्लेटो कि मृत्यु के बाद अरस्तु १३ वर्षीय सिकंदर का शिक्षक नियुक्त किया गया जिससे कि उसे बचपन से ही विश्व पर आक्रमण करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके. इसके लिए उसे बुद्धिहीन किन्तु परम शक्तिशाली बनाया गया. वह पूरी तरह अरस्तु पर निर्भर करता था तथा उसके आज्ञाकारी बना रहता था. अरस्तु तथा सिकंदर ने ईसापूर्व ३२६ में अपना विश्व अभियान आरम्भ किया और अफ्रीका तथा एशिया के देशों को पराजित करता हुआ ईसापूर्व ३२३ में भारत पर आक्रमण के लिए पहुंचा.


इस आक्रमण से पूर्व भारत को निर्बल करने के लिए अफलातून तथा अरस्तु  ने अकादेमी के माध्यम से क्या क्या किया इसे पढ़िए अगले खंड में.