प्रायः सार्वजनिक सेवा हेतु संगठन निःस्वार्थी लोगों द्वारा बनाये जाते हैं तथा उन्ही की ऊर्जा से शक्ति पाते हुए अपने संकल्प पूरे करते हैं । कार्य किसी भी प्रकार का हो कुछ लोगों के स्वार्थ उसमें अवश्य निहित पाए जाते हैं जिनके कारण वे संगठन में सक्रिय हो जाते हैं । जब कि अन्य लोगों के कोई स्वार्थ नहीं होते। इस प्रकार समस्त सम्बंधित समुदाय को संगठन के सापेक्ष दो वर्गों में रखा जा सकता है - स्वार्थी तथा निःस्वार्थी ।
निःस्वार्थी लोग प्रायः निष्क्रिय होते हैं जब तक कि उनकी अंतर्रात्मा उन्हें संगठनात्मक कार्य हेतु झकोरती नहीं है। इस प्रकार निःस्वार्थी लोग दो प्रकार के होते हैं - सक्रिय तथा निष्क्रिय, जब कि स्वार्थी लोग केवल सक्रिय होते हैं । इसका अंततः परिणाम यह होता है कि प्रत्येक संगठन में स्वार्थी लोगों की बहुलता हो जाती है जो संगठन पर एक भार के रूप में होते हैं किन्तु संगठन को शक्ति एवं संसाधन प्राप्त कराने में केवल वहीं तक अपना योगदान देते हैं जहां तक उनके स्वार्थों की सिद्धि होती है । संगठन में अपनी बहुलता के कारण वे संगठन के निःस्वार्थी संचालकों पर भी अपने अंकुश लगाने लगते हैं जिससे कि संगठन द्वारा केवल कार्य संपन्न कराये जाएँ जिससे कि उनके स्वार्थों की अधिकतम संतुष्टि हो ।
प्रत्येक सार्वजनिक हित के संगठन के सफल संचालन हेतु जन सहयोग परमावश्यक होता है, किन्तु जन समुदाय अपनी निःस्वार्थ भावना तथा संगठन में स्वार्थी लोगों की बहुलता के कारण और भी अधिक निष्क्रिय होता जाता है जिससे उसका वांछित सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता । इससे संगठन के निःस्वार्थ संचालकों के समक्ष संगठन संचालन में संकट खडा हो जाता है।
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