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शनिवार, 24 जुलाई 2010

उपनिवेशीकरण - विदेशी और देशी

एक देश से किसी अन्य देश पर शासन करना उपनिवेशीकरण कहलाता है. भारत लम्बे समय तक परतंत्र रहा है किन्तु भारत  मुग़ल शासन का उपनिवेश नहीं था क्योंकि मुग़ल इसी भूमि पर रहकर लोगों पर शासन करते थे. ब्रिटिश शासन में लन्दन स्थित राज सिंहासन से भारत पर शासन किया जाता था. ब्रिटिश शासन के जो प्रतिनिधि भारत में शासन व्यवस्था का संचालन करते थे वे भी स्थानीय शासक ही थे यद्यपि उन्हें प्रशासक कहा जाता था. उनकी दृष्टि में भारतीय मनुष्य न होकर केवल उनके गुलाम थे. इसलिए भारत में रह रहे ब्रिटिश नागरिक भारतीय नागरिकों से स्पष्ट दूरी बनाए रखते थे. उनके मत में ऐसा करके वे जनता पर अच्छा प्रशासन कर सकते थे.

इस दूरी को बनाये रखने के लिए ब्रिटिश लोगों के निवास भारतीयों के निवासों से प्रथक बनाए जाते थे. इसका एक कारण भारतीय  और ब्रिटिश नागरिकों के रहन-सहन और संस्कृति का विशाल अंतराल भी था. प्रशासक होने के कारण, ब्रिटिश लोग अपने निवासों में तत्कालीन सभी सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करते थे जो भारतीयों के निवासों में उपलब्ध नहीं होती थीं. इस अंतराल का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता था जिसके कारण ब्रिटिश नागरिक भारतीयों की दृष्टि में भी श्रेष्ठ माने जाते थे. इस मान्यता के कारण भारतीयों द्वारा ब्रिटिश नागरिकों के आदेशों की अवहेलना करना असंभव सा था चाहे वे आदेश कितने भी अवैधानिक हों. इन्हीं के कारण ब्रिटिश भारतीयों के विविध प्रकार के शोषण करते थे.

ब्रिटिश भारत से चले गए किन्तु प्रशासन के अपने पदचिन्ह यहाँ छोड़ गए. आज भारत स्वतंत्र कहा जाता है किन्तु यहाँ का शासन-प्रशासन ब्रिटिश पद-चिन्हों का ही अनुगमन कर रहा है - विशेषकर कुशल दमनकारी प्रशासन के लिए प्रशासकों और जन साधारण में दूरी बनाए रखकर. इस की व्यवस्था के लिए भारत की केंद्र और राज्य सरकारों के प्रत्येक विभाग के अधिकारियों तथा कर्मियों के लिए अत्याधुनिक बस्तियां बसाई गयी हैं. इन बस्तियों में विद्युत्, जल, संचार आदि की ऐसी विशेष व्यवस्थाएं हैं जो अन्य जन-साधारण की बस्तियों में नहीं हैं और न ही इनके होने की कल्पना की जा सकती है. यथा, भारत के अधिकाँश क्षेत्रों में जन साधारण के लिए ४-५ घंटे प्रतिदिन से अधिक विद्युत् उपलब्ध नहीं है जब कि प्रशासक बस्तियों में इसकी २४ घंटे उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है.

प्रशासकों के जन साधारण से प्रथक व्यवस्थाओं में रहने से प्रशासकों को सबसे बड़ा लाभ तो यह होता है कि वे जन-साधारण की समस्याओं से पूरी तरह अनभिज्ञ रहते हैं और अपने तथाकथित कर्तव्यों का पालन बिना किसी तनाव के करते हैं. इस प्रथक व्यवस्था का दूसरा लाभ मनोवैज्ञानिक है - प्रशासक स्वयं को जन-साधारण से श्रेष्ठ समझते हैं और चाहते हैं कि जनता भी ऐसा ही समझे जिसकी वे ब्रिटिश प्रशासकों को समझते थे.
Civilization 4: Colonization

भारत में ब्रिटिश प्रशासकों की संख्या जन-साधारण की तुलना में नगण्य होती थी जिससे उनके लिए प्रथक आवास व्यवस्था की लागत बहुत अल्प होती थी. किन्तु स्वतंत्र भारत में सभी राज्यकर्मी प्रशासकों की भूमिकाओं में हैं जिनकी संख्या कुल जनसँख्या का लगभग १० प्रतिशत है. इन सबके लिए प्रथक आवासीय व्यवस्था पर बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन व्यय किया जा रहा है.