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शनिवार, 22 मई 2010

सामान्य और विशिष्ट लोगों की मानसिकता

जैसा मेरे देश का हाल है, ठीक वैसा ही मेरे गाँव का. समाज दो वर्गों में बनता है - सामान्य और विशिष्ट. विशिष्ट व्यक्ति साधन-संपन्न और कुटिलता में संपन्न हैं, जिसके कारण सरकार जो भीख निर्धनों के लिए देती है, ये उसके माध्यम होते हैं और उसमें से मोटा हिस्सा मर लेते अं. इस प्रकार वे बिना कुछ किये ही वैभवपूर्ण जीवन जीते हैं और समाज में सम्मान पाते हैं. लोग उन्हें ही अक्लमंद कहते हैं. सामान्य लोग निर्धन हैं, अधिकांश अशिक्षित हैं, और कुछ विवशता तथा कुछ विशिष्ट लोगों से प्रेरणा पाते हुए क्षुद्र लाभों के लिए विशिष्ट लोगों के समक्ष हाथ फैलाये खड़े रहते हैं ताकि उनके माध्यम से सरकारी भीख का कुछ अंश मिल जाए. परिश्रम करते हुए सम्मानित जीवन में इनकी भी निष्ठां नहीं रह गयी है. 

विगत ३० वर्षों से निर्धनों को सरकारी भीख में निरंतर वृद्धि होती रही है, जिसके कारण कुटिल विशिष्ट जन गाँव में सक्रिय रहे हैं और गाँव के नेतृत्व में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं. सामान्य जन इन पर निर्भर भी हैं और इनसे तृस्त भी हैं. वे इनसे मुक्त होना चाहते हैं किन्तु  ऐसा स्पष्ट कहने का साहस नहीं कर पाते. कहीं ऐसा न हो कि जो भीख सरकार से मिल रही है, वह भी बंद हो जाए. यदि कभी किसी ने कुछ साहस दिखाया है तो उसकी भीख वस्तुतः बंद कर दी गयी है.

ऐसे वातावरण में मैं लगभग १० वर्ष से गाँव के संपर्क में रहा हूँ और विगत ५ वर्ष से यहीं स्थायी रूप से रह रहा हूँ. इस अवधि में मैंने विवश हलर गाँव में कुछ ऐसे कार्य किये हैं जिनके कारण जन-सामान्य मेरी इमानदारी और साहस पर विश्वास करने लगे हैं, साथ ही अधिकाँश विशिष्ट लोगों की आँखों में मैं खटकता रहा हूँ. 

Aspects of Local Government in a Sumbawan Villageआगामी सितम्बर-अक्टूबर में ग्राम पंचायत के चुनाव होने हैं जिनके लिए अनेक सामान्य जनों ने मुझ पर उनका प्रतिनिधित्व करने का जोर दिया, और उनकी इच्छा देखते हुए मैंने हामी भी भर दी. गाँव में जोश उमड़ पड़ा, जिसमें कुछ विशिष्ट जन मेरे साथ लग गए तो कुछ मेरे कट्टर विरोधी बन गए. साथ वे लगे जिन्हें मुझसे आशा हुई कि मैं उनकी स्वार्थपूर्ति का एक माध्यम बनूँगा, और विरोध में आ खड़े हुए जिनकी स्वार्थपूर्ति में मेरे बाधक होने की संभावना है. वस्तुतः दोनों वर्गों का लक्ष्य एक ही है - स्वार्थपूर्ति.

मेरे तथाकथित सहयोगी मुझे सामान्यजन से अलग-थलग रकना चाहते हैं ताकि मैं उनकी समस्याओं से दूर रहकर अपने सहयोगियों के काम आता रहूँ. मेरे विरोधियों का प्रयास है कि वे मुझे गाँव से ही भगा दें. वे ग्राम पंचायत प्रधान पद को आरक्षित करने का प्रयास भी कर रहे हैं ताकि मैं प्रत्याशी ही न बन पाऊँ और उनका मार्ग निष्कंटक हो जाए. प्रशासन भृष्ट है, इसलिए कुछ भी किया जा सकता है, यद्यपि शासन की घोषित नीति के अनुसार उक्त पद आरक्षित नहीं होना चाहिए.

Village of the Damned चुनाव की तैयारी के लिए मैंने अपने सहयोगियों की एक सभा बुलाई जिसमें भी उन्होंने मुझे अपने चंगुल में बनाए रखने के पूरे प्रयास किये. अनेक सहयोगी अनुचित लाभ पाने की अपनी मांगें मेरे समक्ष रखते रहे हैं, जिनका मैं कठोरता से प्रतिकार करता रहा हूँ. इस पर भी जन-सामान्य से मेरा संपर्क बना हुआ है जिस पर मेरे सहयोगी अपनी आपत्तियां दर्शाते रहे हैं. अंततः कल विस्फोट हुआ, और मेरे तथाकथित सहयोगियों ने मेरे विरुद्ध विद्रोह कर दिया और मैं अकेला रह गया. जन-सामान्य अभी इस से प्रसन्न है किन्तु मेरे पूर्व सहयोगी उन्हें मेरे विरुद्ध भड़काने के प्रयास करने लगे हैं. वे मेरे कट्टर विरोधियों से भी संपर्क स्थापित करने लगे हैं. इस प्रकार गाँव के सभी विशिष्ट व्यक्ति मेरे विरोधी बन गए हैं.
 
चुनाव प्रक्रिया ऐसी है जिसमें प्रत्याशियों को कुटिल सहयोगियों की भी आवश्यकता होती है अन्यता चुनाव प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली कर परिणाम को विकृत किया जा सकता है. मेरे विरुद्ध कुछ ऐसा ही होने की संभावना है, तथापि मैं अकेला ही संघर्ष के लिए प्रस्तुत हूँ.