वेदों और शास्त्रों में उपयुक्त ग्राम और ग्रामीण शब्दों के वही अर्थ लिए जा रहे हैं जो आधुनिक संस्कृत में लिए जाते हैं, जो सर्वथा दोषपूर्ण है और इससे वेदों और शास्त्रों के भृष्ट अनुवाद किये गए हैं. इन शब्दों का मूल स्रोत लैटिन भाषा का शब्द gramen / graminis है जिसका अर्थ हिंदी का घास है. मनुष्य जाति के अधिकाँश खाद्यान्न जिन पोधों से प्राप्त होते हैं वे सभी घास वर्ग के पौधे होते हैं यथा - गेंहू, चना, मटर, मक्की, अरहर, मसूर, आदि. घास वर्ग के सभी पौधे वार्षिक होते हैं और ऋतू परिवर्तन के साथ सूख जाते हें किन्तु गन्ना जैसे कुछ पौधे पुनः अनुकूल परिस्थितियां पाकर उगने लगते हैं. आधुनिक वनस्पति शास्त्र की भी यही मान्यता है. इस प्रकार वेदों और शास्त्रों में उपयुक्त इन शब्दों के अर्थ क्रमशः खाद्यान्न तथा घास हैं.
हिंदी के ग्राम शब्द के समतुल्य शास्त्रीय शब्द गोत्र है जो लैटिन के cotter से उद्भूत है और जिसका भाव कुटियों का स्थान है क्योंकि उस समय घर कुटियों के रूप में ही होते थे. अपने ही गाँव में विवाह को प्रतिबंधित करने के लिए अपने गोत्र में विवाह की मनाही थी जो सभी जातियों में आज भी प्रचलित है.