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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

उत्तर प्रदेश की राजनैतिक हलचल

 उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव लगभग १४ महीने दूर रह गए हैं, इसलिए राजनैतिक दलों और संभावित प्रत्याशियों ने अपनी तैयारियां आरम्भ कर दी हैं. प्रत्याशियों की घोषणा में बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे रहती है जिससे कि प्रत्याशियों को अपने चुनाव प्रचार के लिए लम्बा समय प्राप्त हो जाता है. अभी यह सत्ता में भी है, इसका नैतिक-अनैतिक लाभ भी इसके प्रत्याशियों को प्राप्त होगा. आशा है १-२ महीने में बसपा के प्रत्याशी मैदान में होंगे. कांग्रेस प्रत्याशियों की घोषणा में सबसे पीछे रहती है. उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रत्याशियों का चयन जातीय आधार पर किया जाता है जिसमें प्रबुद्ध जातियों और प्रत्याशियों की अवहेलना होनी स्वाभाविक है. 


बिहार में हाल के विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित विजय प्राप्त हुई है, इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश में भी पड़ेगा जिससे भारतीय जनता पार्टी को कुछ लाभ होने की आशा है. बसपा को जहां एक ओर सत्ता का लाभ प्राप्त होगा वहीं इसे सत्ता में रहते हुए कुछ विशेष न करने के कारण हानि भी होगी. तथापि यही एक दल है जिसके पास अपना मतदाता समाज है. कांग्रेस की केंद्र में सरकार है और देश में निरंतर बढ़ती महंगाई के लिए उत्तरदायी होने के कारण मतदाता इससे रुष्ट हैं. केंद्र सरकार के कांग्रेस नेताओं के भृष्टाचार में लिप्त होने के प्रचार-प्रसार से भी इस दल को भारी हानि होगी. प्रदेश में इसके पास कोई सक्षम नेता भी नहीं है. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी केवल एक परिवार और उसकी जाति की पार्टी होने के कारण लुप्त होती जा रही है जिसकी वापिसी के कोई आसार नहीं हैं.


इस प्रकार आगामी चुनाव में प्रमुख मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और बसपा के मध्य होना निश्चित है. राजनैतिक दलों के पारस्परिक गठबन्धनों का प्रभाव भी चुनाव परिणामों पर होगा जिसके बारे में तभी कहा जा सकता है जब कोई गठबंधन हो पाए. भारतीय जनता पार्टी के पुराने नेता कल्याण सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जाति की बहुलता के आधार पर अपना नया दल बना लिया है जिससे भारतीय जनता पार्टी को कुछ हानि होगी. इस दल को उत्तर प्रदेश में कुछ हानि इस तथ्य से भी होगी कि इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष की छबि एक राष्ट्रीय नेता की नहीं है. जब कि बसपा की नेता मायावती उत्तर प्रदेश की ही हैं और अछोत जाते की होने के कारण अन्य प्रदेशों में भी इस दल का प्रसार हो रहा है. यह दल मायावती को देश के भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रस्थापित करने के प्रयास करता रहा है और इसका लाभ उठाता रहा है. तथापि भारत में दलित राजनीति सदैव अल्पकालिक रही है और इस में संदेह किया जा सकता है कि मायावती कभी देश की प्रधान मंत्री बन पाएंगी. 


यदि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में बिहार जैसी स्थिति में आ जाए तो निकट भविष्य में यह केंद्र में सत्ता प्राप्त करने में सफल हो सकती है. इसके लिए इसे अन्य सहयोगी दलों के साथ विनम्रता का व्यवहार करना होगा. इस दल को एक बड़ा लाभ इसके अनुशासित कार्यकर्ताओं का भी प्राप्त होता है जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा प्रशिक्षित होते हैं. इसके विपरीत इस दल को कट्टर हिंदूवादी माना जाने के कारण मुस्लिम मतदाताओं का सहयोग प्राप्त नहीं होता. यदि ये मतदाता बहुल रूप में बसपा को समर्थन दे दें तो भारतीय जनता पार्टी को कठिनाई में डाल सकते हैं. 
Planet India: The Turbulent Rise of the Largest Democracy and the Future of Our World


फिर भी आज देश की राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि निष्ठावान इमानदार व्यक्ति के लिए कहीं कोई स्थान नहीं है. कुछ आशा की किरण दिखाई देती है तो भारतीय जनता पार्टी में ही है.