डॉ राम मनोहर लोहिया |
ब्रिटिश शासन काल में जनपद बुलंदशहर के ग्राम खंदोई स्पष्ट रूप से दो भागों में बँट चुका था - एक ओर श्री करन लाल जी के नेतृत्वमें आज़ादी के दीवानों ने अपनी जानों की बाजी लगा दी थी जिसमें गाँव के लगभग ४० परिवारों ने अपने पूरे संसाधनआज़ादी के लिए समर्पित कर दिए थे. दूसरी ओर जमींदार परिवार थे जो समाज की शोषणपरक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अंग्रेजों के पक्षधर बने हुए थे.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जवाहर लाल नेहरु ने देश की आज़ादी के विरोधी अंग्रेजों के वफादार जमींदारों और राजघरानोंको कांग्रेस में सम्मिलित करना आरम्भ कर दिया. इस पर सच्चे देशभक्तों का कांग्रेस में कोई महत्व नहीं रहा, और कांग्रेस देश में नए नाम से अंग्रेज़ी शोषणपरक शासनव्यवस्था को बनाए रखने का माध्यम बन गयी.
देशभक्तों के नेतृत्व के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव, आदि आगे आये और उन्होंने देश के प्रथम लोकतांत्रिक चुनाव- 1952 में कांग्रेस के समक्ष एक चुनौती के रूप में सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया, जिसकी हवा ने ग्राम खंदोई को भी झकझोर दिया. गाँव के पुराने दो खेमे सोशलिस्ट और कांग्रेस के नामों से जाने जाने लगे. एक ओर श्री करन लाल जी का नेतृत्व था तो दूसरी ओर जमींदारों का पूंजीवादी शोषण.
इसी आन्दोलन में डॉ लोहिया का खंदोई में आगमन हुआ और वे गाँव में एक सप्ताह रहे तथा खंदोई को केंद्र बनाकर आसपास के क्षेत्र में कांग्रेस के देशद्रोहियोंके हाथ की कठपुतली बनाए जाने के विरुद्धक्रांति की मशाल प्रज्वलित की. इसी समय डॉ लोहिया ने ग्राम खंदोई में एक जूनियर हाई स्कूल 'जनता जूनियर हाई स्कूल' की स्थापना की जो आज जनता इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है किन्तु समाज कंटकों ने इसे अपने अधिपत्य में ले लिया है.
डॉ लोहिया के आगमन की ज्वाला से ग्राम खंदोई के 200 से अधिक लोग, जिनमें इस लेखक , जो उस समय मात्र 4 वर्ष का था, सहित बच्चे, स्त्रियाँ, युवा तथा वृद्ध सम्मिलित थे
सोशलिस्ट झंडे के नीचे जेल गए. क्षेत्र के अनेक कृषकों की जम्मेंदारों द्वारा अपहृत भूमियों को कृषकों को वापिस दिलाया.
श्री करन लाल |
डॉ लोहिया ने श्री करन लाल जी को 1952 के चुनाव हेतु अनूपशहर विधान सभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार बनाया. क्षेत्रवासियों में लाल टोपीधारियों की बाढ़ सी आ गयी और बच्चे-बड़े-बूढों की जवान से एक ही नारा गूंजने लगा, 'धन और धरती बँट कर रहेगी, भूखी जनता अब ना सहेगी'.
देश में कांग्रेस के नाम पर क्षुद्र अवसरवादियों का शासन बना रहा जिसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव खंदोई-वासियों पर पडा. शासकों और प्रशासक खंदोई-वासियों के सोशलिस्ट आन्दोलन को व्यापक समर्थन दिए जाने के कारण खंदोई के विकास की पूरी तरह अवहेलना करते रहे. गाँव के 40 से अधिक स्वतन्त्रता सेनानी इससे निराश अवश्य हुए किन्तु वे कांग्रेस के समाज-विरोधी रुख के समक्ष कभी नहीं झुके.