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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

स्वतन्त्रता सेनानी स्मृति योजना, खंदोई

९ अगस्त १९४२ को गांधीजी के आह्वान 'अंग्रेजो भारत छोडो' की चिंगारी गाँव खंदोई भी पहुँची. खंदोई के नौजवानों में भी अंग्रेज़ी सरकार की दमनकारी नीतियों के प्रति आक्रोश था. महात्मा गाँधी के आह्वान पर महाशय करन लाल जी के नेतृत्व में दर्ज़नों नौजवानों ने एकत्र होकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध संघर्ष की योजना बनायी. अंग्रेज़ी सरकार के सिंचाई कार्यालय (चरौरा कोठी) जिसमे अँगरेज़ अधिकारी किसानों के मुकदमे सुनते थे, खंदोई के नौजवानों ने इसी दफ्तर को नष्ट करने की योजना बनायी.



२१ अगस्त १९४२ की रात्री को खंदोई के लोगों जिनमें सर्वश्री राम चन्द्र सिंह, गिरवर प्रसाद शर्मा, नन्द राम गुप्ता, नेकलाल, आदि के साथ एक बच्चा खचेडू सिंह भी श्री करन लाल जी के नेतृत्व में जंगल (खेतों) के रास्ते होते हुए पडौस के गाँव भगवन्तपुर पहुंचे और वहां से मिट्टी के तेल का कनस्तर लेकर रात्री में ही चरौरा कोठी पहुँच गए. कुछ लोगों ने टेलीफोन के तार काट दिए तथा दफ्तर को चारों ओर से घेर कर उसमें आग लगा दी. थोड़ी ही देर में दफ्तर जल कर राख हो गया. आग लगाने की खबर भी पूरे क्षेत्र में आग की तरह फ़ैल गयी. आग लगाने वाले आज़ादी के दीवाने भूमिगत हो गए.


तत्कालीन कलेक्टर हार्डी इतने क्रोधित हुए कि खंदोई में भारी फ़ोर्स के साथ आ धमके तथा गाँव के लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिए. कलेक्टर हार्डी ने पूरे गाँव को आग के हवाले करने तक का फरमान सुना दिया. लेकिन संघर्ष शील जनता के सामने उन्हें हाथ खींचना पडा. दर्जनों लोगों को जेल में डाल दिया गया. कलेक्टर हार्डी ने तत्कालीन जज श्री डी पद्मनाभन को श्री करन लाल को फांसी दिए जाने का आदेश दे दिया. इस पर जज महोदय श्री पद्मनाभन, जो क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति रखते थे, ने वकील के माध्यम से श्री करन लाल को सन्देश भिजवा दिया कि वे तब तक अदालत में हाजिर न हों जब तक कि हार्डी बुलंदशहर कि कलेक्टर रहे अन्यथा फांसी दिया जाना नहीं टाला जा सकेगा.


हार्डी के बुलंदशहर से तबादले के बाद श्री करन लाल जी अदालत में हाजिर हुए जिसपर उन्हें कारागार भेज दिया गया. कुल मिलकर उन्हें ३ वर्ष से अधिक की सजा मिली थी. गाँव के अन्य लोगों को भी सजाएं मिलीं.


देश के शहीदों, संघर्ष करने वालों तथा आजादी के दीवानों के जज्बात तथा देश के नौजवानों जैसे सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान आदि की कुर्बानी तथा महात्मा गाँधी के नेतृत्व से १५ अगस्त १९४७ को देश के लोगों आज़ादी की सांस ली. गाँव खंदोई के लोगों को भी आज़ादी के साथ बहुत राहत मिली. कुछ समय बाद आज्ज़दी के लिए संघर्ष करने वालों को 'स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी' का दर्ज़ा दिया गया एवं सरकार द्वारा उन्हें पेंशन भी दी गयी. खंदोई के २6 लोग भी इस सूची में स्थान पा सके. आज़ादी के संघर्ष में लगभग ४० लोगों ने हिस्सा लिया था, किन्तु  आज़ादी से पहले मृत्यु अथवा ३ माह से कम की सजा के कारण उन्हें उस सूची में स्थान नहीं मिल पाया.  

१९३६ में गठित किसानों का महत्वपूर्ण संगठन 'किसान सभा' आज़ादी के संघर्ष की कथा तिथियों के अनुसार कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है जिसमें देश को आर्थिक आजादी दिलाने का संकल्प भी लिया जाता है. क्षेत्रीय स्तर पर, खंदोई के लोगों द्वारा आजादी के लिए संघर्ष को याद करने के लिए २१ अगस्त (चरौरा कोठी काण्ड) को भी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें आज के नौजवानों को देश प्रेम के लिए प्रेरित करने, आज़ादी के महत्व को समझाने तथा अधूरी आजादी को पूरा करने का आह्वान किया जाता है. इन कार्यक्रमों में चरौरा कोठी काण्ड के सैनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.

अब खंदोई के सभी स्वतन्त्रता सैनानियों का स्वर्गवास हो चुका है. उनके संघर्ष को जीवंत बनाए रखने के लिए, ग्रामवासियों ने पश्चिमी प्रवेश मार्ग पर एक भव्य 'स्वतन्त्रता सेनानी द्वार' के निर्माण का संकल्प लिया है. जिसके पास ही तालाब का सौन्दर्यकरण, वृहत वृक्षारोपण, तथा मनोरंजन पार्क का निर्माण भी किया जाएगा.  

रविवार, 6 मार्च 2011

भारत का नेतृत्व - बलिदान के स्थान पर शोषण

जनता द्वारा सम्मान पाते हुए नेतृत्व करने के लिए आत्म-बलिदान की आवश्यकता होती है, जैसा की गाँधी, सुभाष, आदि ने किया. इसके साथ ही इन आत्म-बलिदानियों के बलिदानों का लाभ उठाने के लिए नेहरु भी होते रहे हैं जो इन का और जनता का शोषण करते रहने की ताक में रहते हैं. परिणामस्वरूप गाँधी और सुभाष अपने जीवनों से हाथ धो बैठते हैं और नेहरु सत्ता सुख भोगते हैं. ऐसा हुआ है क्योंकि दीर्घावधि से दासता की जंजीरों में जकड़ी जनता इस सबके बारे में अनभिज्ञ और निष्क्रिय रही है. मामला यहीं समाप्त न होकर दूरगामी परिणामों वाला सिद्ध हुआ है. 

स्वतंत्र भारत के नेताओं ने उक्त उदाहरण से यह मान लिया कि जनता उसी प्रकार सुषुप्त और निष्क्रिय रहेगी और वे शोषण करते हुए अपना नेतृत्व बनाए रख सकते हैं. अतः स्वतंत्र भारत में उभरे अधिकाँश नेता केवल शोषण को ही अपने नेतृत्व का आधार बनाये हुए रहे हैं. इन नेताओं में राजनैतिक नेता तो सम्मिलित रहे ही हैं, वे भी इसी प्रकार के होते रहे हैं जो उक्त भृष्ट राजनेताओं का विरोध करते रहे हैं. इस प्रकार देश में नेतृत्व की परिभाषा के साथ शोषण अभिन्न रूप में जुड़ गया है. इसी का परिणाम है देश में चरम सीमा तक पहुंचा राजनैतिक भृष्टाचार, जिसका अनुमान देश में विभिन्न स्तरों के जनतांत्रिक चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा किये गए औसत व्यय से लगाया जा सकता है -

ग्राम प्रधान - ५ से १० लाख रुपये,
विकास खंड प्रमुख - २५ से ५० लाख रुपये,
जिला पंचायत अध्यक्ष - ५० लाख से १ करोड़ रुपये,
विधान सभा सदस्य - १ करोड़ से २ करोड़ रुपये,
संसद सदस्य - २ से ५ करोड़ रुपये, आदि, आदि...

यह धन जनता को निष्क्रिय बनाये रखने के लिए व्यय किया जाता है जिससे कि वह अपने शोषण के विरुद्ध अपना स्वर बुलंद न कर सके. और देश की जनता इतनी मूर्ख सिद्ध हो रही है कि वह शासन में अपने मत का महत्व अभी तक नहीं समझ पायी है. उक्त धन व्यय करने के बाद चुनाव में विजयी अथवा परास्त होने के बाद प्रत्याशियों को अपना धन वापिस पाने की इच्छा होना स्वाभाविक है, जिसके लिए वे अपना गठजोड़ बनाते हैं और अपने भृष्ट आचरणों द्वारा जनता का शोषण करने में जुट जाते हैं. जिसके परिणामस्वरूप एक ओर जनता की गरीबी बढ़ती है दूसरी ओर महंगाई. इस कुचक्र में फंसा जन-साधारण अपने जीवन को बनाये रखने की चिंताओं में इतना निमग्न हो जाता है कि उसे अपने शोषण को समझने और उसके विरुद्ध कुछ करने का होश ही नहीं रहता. 

नेतृत्व द्वारा अन्य लोगों का शोषण केवल आर्थिक ही नहीं होता, यह मनोवैज्ञानिक भी होता है. जनसाधारण के मनोवैज्ञानिक शोषण में तथाकथित धर्मात्मा भी राजनेताओं के सहयोगी होते हैं जो सब मिलकर जनता को समस्याग्रस्त, दीन-हीन और निर्बल बनाये रखते हैं. इससे जनता देश के पूरे घटनाक्रम की मात्र दर्शक बन कर रह जाती है, और विभिन्न स्टारों पर शोषण गहन होता जाता है.

मनोवैज्ञानिक शोषण दो उदाहरण मुझे ध्यान आते हैं - राजीव गाँधी को देश का प्रधान मंत्री पद इस लिए दे दिया गया क्योंकि उसकी माँ की हत्या कर दी गयी थी. जबकि नित्यप्रति अनेक माँ अपनी जान खोती रहती हैं और उनके पुत्रों को न्याय तक नहीं मिलता. राजीव को प्रधान मंत्री चुनते समय कभी किसी ने यह विचार नहीं किया की वह इस पद के योग्य भी था या नहीं.

दूसरा उदाहरण मेरे क्षेत्र में अभी हाल में हुए जिला पंचायत सदस्यटा का चुनाव का है जिसमें एक जाने-माने अपराधी को जनता द्वारा इसलिए चुन दिया गया क्योंकि वह अपने अपराधों के कारण पुलिस से भयभीत था और मतदाताओं से दया की भीख मांगता था. इसके लिए वह प्रत्येक मतदाता के चरण उस समय तक पकडे रहता था जब तक की उसे मत देने का वचन न दिया जाता. इस चुनाव में भी प्रत्याशी की सुयोग्यता पर कभी कोई विचार नहीं किया गया. ये दोनों उदाहरण जन-साधारण के मनोवैज्ञानिक शोषण को दर्शाते हैं.

गाँधी के आत्म-बलिदान और नेहरु के शोषण के समतुल्य ही एक वर्तमान उदाहरण हमारे समक्ष है. देश में भृष्टाचार के विरुद्ध प्रभावी विधान की मांग करने के लिए एक प्रमुख गांधीवादी श्री अन्ना हजारे ने ५ अप्रैल से देल्ली के जंतर मंतर पर आमरण भूख हड़ताल करने की घोषणा की है जिसका भृष्टाचार विरोधी नेताओं ने पुरजोर स्वागत किया है. इस विषयक प्रथम बैठक में मैं इन नेताओं से आग्रह किया था कि अन्ना जी हम सबके लिए पितातुल्य हैं और वे अपने जीवन का बलिदान करें और हम सब तमाशा देखते रहें यह हम सबके लिए लज्जाजनक है. इसलिए हम सब बड़ी संख्या में आमरण भूख हड़ताल करें और अन्ना जी को ऐसा न करने के लिए राजी कर लें. किन्तु यह नेहरु प्रकार के नेताओं को पसंद नहीं आया और उन्होंने मेरे सुझाव की अवहेलना कर दी. इस मैंने स्वयं ५ अप्रैल से जंतर मंतर पर आमरण भूख हड़ताल की घोषणा कर दी और अन्ना जी से आग्रह किया है की भूख हड़ताल न करें और मेरे पास मेरे मार्गदर्शक की रूप में उपस्थित रहें.
The Effective Public Manager

अब आन्दोलन के उक्त नेता खूब जोर-शोर से अन्ना जी की आमरण भूख हड़ताल का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं ताकि वे इससे पीछे न हट पायें.           

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

मेरी आमरण भूख हड़ताल

अपने घर, गाँव और क्षेत्र में विद्युत् प्रदाय की अति गंभीर रूप से बुरी दशा से मैं इतना निराश हो गया हूँ कि विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्मा को जागृत करने के लिए मैं अपने जीवन को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत हूँ. जिसके लिए मैंने जनपद प्रशासन और विद्युत् अधिकारियों को जो सूचना दी है, उसका हिंदी अनुवाद निम्नांकित है.    

"सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
बुलंदशहर


श्रीमान जी,
मैं ६२ वर्षीय इंजिनियर हूँ और अब विगत लगभग १० वर्षों से अपने पैतृक गाँव में रहते हुए लेखन कार्य कर रहा हूँ. मैं सर्वश्री पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम लिमिटेड का अपने गाँव खंदोई, उपखंड जहांगीराबाद, विद्युत् वितरण खंड ३, बुलंदशहर के अंतर्गत कुछ वर्षों से एक विद्युत् उपभोक्ता हूँ और अपने कंप्यूटर सिस्टम पर लेखन कार्य के लिए उपयुक्त और पर्याप्त विद्युत् प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहा हूँ किन्तु विद्युत् निगम के क्षेत्रीय अधिकारियों - जूनियर इंजिनियर, सुब-डिविजनल ऑफिसर, एक्जीकुटिव इंजिनियर की कर्तव्यहीनता के कारण बुरी तरह से असफल होता रहा हूँ. अपनी कठिनाई बुलंदशहर स्थित अधीक्षण अभियंता श्री आर. के. गुप्ता के समक्ष रखने के लिए मैंने ३/४ प्रयास किये हैं किन्तु वे शिकायत करने वाले उपभोक्ताओं से मिलने से ही इनकार करते रहे हैं.


वर्त्तमान में, मैं विगत ६ माह से विद्युत् वोल्टेज में अत्यधिक अप्रत्याशित विचलन - १०० से ३०० तक, से दुखी हूँ जिसके कारण मेरा कंप्यूटर प्रत्येक १०/१५ मिनट पर बंद हो जाता है. जबकि निर्धारित मानक के अनुसार वोल्टेज में केवल ६ प्रतिशत उतर-चढ़ाव अनुमत है. मैंने इस समस्या का अध्ययन किया है और इसके दो कारण पाए हैं -
  1. विद्युत् वितरण ट्रांसफार्मर का न्यूट्रल भूमि से ठीक प्रकार से नहीं जोड़ा गया है जिससे लाइन पर एक-फेज के विद्युत् भारों में परिवर्तन होते रहने से न्यूट्रल का विभव परिवर्तित होता रहता है.
  2. विद्युत् लाइन पर भारी मात्रा में अनधिकृत विद्युत् भार - लाइट तथा पॉवर, चोरी से डाले जा रहे हैं जिसमें जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों का व्यक्तिगत लाभों के कारण सहयोग रहता है.        
मैं जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों से ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को ठीक से अर्थ करने हेतु निवेदन करता रहा हूँ किन्तु उन द्वारा कोई कार्यवाही न किये जाने के कारण उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन के चेयरमेन तक पहुंचा हूँ जिन्होंने क्षेत्र अधिकारियों को मेरी शिकायत दूर करने के निर्देश दिए हैं. इसके परिणामस्वरूप उप खंड अधिकारी और एक एक्सीकुटिव इंजिनियर श्री राकेश कुमार लगभग एक माह पूर्व मेरे पास आये और मैंने उन्हें समस्या से अवगत कराया जिसपर उन्होंने २/३ दिन में कार्यवाही का आश्वासन दिया. किन्तु अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है और समस्या दिन प्रति दिन गहनतर होती जा रही है.
उक्त राज्य पोषित अधिकारियों की मुझ जैसे सही विद्युत् उपभोक्ताओं के प्रति इस प्रकार की लापरवाही और कर्तव्यहीनता मैं उसी समय से देखता रहा हूँ जब मैंने विद्युत् कनेक्शन के लिए आवेदन किया था. इन अधिकारियों की कार्य प्रणाली मेन दमन, शोषण, भृष्टाचार, आदि भरपूर हैं.
उक्त मामले को मैं विद्युत् उपभोक्ता फोरम में ले गया था किन्तु फोरम के अधिकारी उसी विद्युत् निगम के अधीन हैं जिसके विरुद्ध शिकायत की गयी थी, इसलिए वे विद्युत् निगम अधिकारीयों के विरुद्ध जब तक निर्णय नहीं लेते जब तक कि उनके निजी स्वार्थ निहित न हों. इसके अतिरिक्त फोरम को अपने निर्णय के अनुपालन कराने के अधिकार भी नहीं हैं. इस बारे में मैंने फोरम के नियोक्ता उत्तर प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग को भी लिख किन्तु उन्होंने उपभोक्ता शिकायतों को सुनने से इंकार कर दिया. इस सबका अर्थ यही है कि वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत विद्युत् उपभोक्ता शिकायत दूर करने का कोई उपाय नहीं है.
उक्त व्यक्तिगत समस्या के अतिरिक्त मेरे क्षेत्र की अनेक विद्युत् समस्याएँ भी हैं जिनसे मैं भी प्रभावित होता हूँ -

  1. ऊंचागांव विद्युत् गृह के उपकरण लगभग ५० वर्ष पुराने हैं और उनके सेवाकाल बहुत पहले ही समाप्त हो चुके हैं. इससे विद्युत् उपलब्धि की निर्धारित अवधि में भी बार-बार विद्युत् बंद होती रहती है, जो निर्धारित ८ घंटे प्रतिदिन के स्थान पर मात्र ४-५ घंटे ही उपलब्ध होती है.   
  2. जनपद बुलंदशहर में विद्युत् अधीक्षण अभियंताओं की संख्य दोगुनित कर दी गयी है, तथा एक्सीकुटिव इंजीनिअरों की संख्या में भी वृद्धि होती रही है, किन्तु उपभोक्ता सेवा के लिए नियुक्त कर्मियों की संख्या कम की जाती रही है. इससे उपकरणों और लाइनों की देखरेख दुष्कर हो गयी है जिससे उपभोक्ता सेवाओं में गिरावट आयी है.
  3. क्षेत्र में विद्युत् की स्थिति सुधार के लिए निगम की अनेक योजनाएं दीर्घ काल से लंबित पडी हुई हैं जिसका कारण धन का अभाव बताया जाता है, जो क्षेत्र के विद्युत् अधिकारीयों द्वारा नियोजित अथवा उनकी लापरवाही के कारण विद्युत् की बड़े पैमाने पर चोरियों के कारण है. इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.  
अब चूंकि प्रदेश की शीर्षस्थ विद्युत् निगम के अध्यक्ष महोदय भी क्षेत्र अधिकारियों को अपनी कर्त्तव्य-परायणता और दायित्वों को समझाने में पूरी तरह असफल होते रहे हैं, मैं अब पूरी तरह निराश हो चुका हूँ और किसी सुधार की आशा नहीं कर सकता. इसी के साथ ही उक्त लापरवाहियों और कर्तव्यहीनता के सर्वाधिक दोषी जूनियर इंजिनियर श्री के. एल. गुप्ता को क्षेत्रीय अधिकारियों ने स्पष्ट कारणों से पदोन्नति देकर पुरस्कृत किया है.

अतः, मैंने पूजनीय महात्मा गाँधी से प्रेरणा पाकर उत्तर प्रदेश में विद्युत् अधिकारियों द्वारा विद्युत् उपभोक्ताओं के उत्पीडन को विश्व स्तर पर प्रकाश में लाने के लिए और विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्माओं को अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जागृत करने के उद्देश्य से २० फरवरी २०११ से अपने गाँव खंदोई में विद्युत् वितरण ट्रांस्फोर्मेर के निकट आमरण भूख हड़ताल कर अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया है. मेरे जीवन की इस प्रकार समाप्ति के लिए उपरोक्त विद्युत् अधिकारी ही पूर्णतः उत्तरदायी होंगे. 
Non-Violent Resistance (Satyagraha)
यह आप की सूचनार्थ और आप द्वारा ध्यान देने हेतु प्रेषित है. 

भवदीय 
राम कुमार बंसल 
पुत्र स्वर्गीय श्री करन लाल, स्वतन्त्रता सेनानी
गाँव खंदोई, जनपद बुलंदशहर."