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रविवार, 5 सितंबर 2010

विश्वीय दृष्टिकोण, स्थानीय कर्म

बौद्धिक जनतंत्र के लिए स्थानीय हितों की रक्षा सर्वोपरि होता है - राष्ट्र, क्षेत्र, गाँव, आदि के सापेक्ष. जबकि विकासशील विश्व में जनतंत्र के अंतर्गत प्रत्येक उत्तम वस्तु निर्यात कर दी जाती है उस विदेशी मुद्रा के लिए जिस के उपयोग से घटिया वस्तुएं देश में लाई जाती हैं. यह किसी व्यावसायिक इकाई के लिए हितकर प्रतीत हो सकता है किन्तु राष्ट्र और समाज के लिए अनेक प्रकार से अनुत्पादक सिद्ध होता है और बौद्धिक दृष्टि से अनैतिक भी है.


यहाँ एक मौलिक प्रश्न उभरता है - विश्वीय दृष्टिकोण की आवश्यकता ही क्या है? इसका हमारे पास एक अति उत्तम उत्तर है. यदि लोग जो चाहें, उन्हें सरकार द्वारा वही सब उपलब्ध कराया जाए तो वे संतुष्ट हो सकते हैं. किन्तु बौद्धिक विश्व इससे संतुष्ट नहीं हो सकता. लोग केवल वही चाह सकते हैं जो वे जानते हैं, किन्तु विश्व में उनके ज्ञान के अतिरिक्त भी बहुत कुछ होता है जो उन्हें शासन द्वारा उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इससे शासन में लोगों की आस्था सुदृढ़ होती है और विश्वीय विकास से लोगों की सेवा संभव होती है. इसके लिए शासकों के विश्वीय दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य होता है.


विश्वीय दृष्टिकोण से स्थानीय कर्म संलग्न होने से शासन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित उत्पादों को देश में आयात की अनुमति प्राप्त ना होकर उन उत्पादों के देश में ही उत्पादन एवं लोगों द्वारा उपभोग उत्प्रेरित होता है. इससे देश में व्यवसाय और रोजगार के नए अवसर विकसित होते हैं जिनसे व्यक्तिगत और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है. 


शासन का विश्वीय दृष्टिकोण देश की अर्थव्यवस्था के विश्वीकरण से भिन्न प्रक्रिया है. विश्वीकरण में विश्व-स्तरीय कर्म अपनाया जाता है जो पूरी तरह अव्यवहारिक होता है जब कि विश्वीय दृष्टिकोण में केवल विकास का विश्वीय दर्शन अपनाया जाता है जिसे स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुकूल किया जाकर स्थानीय कर्मों में उसका उपयोग किया जाता है. इससे विकास प्रक्रिया स्थानीय कर्मों से संचालित होती है. 


वस्तुतः, भूमंडल पर प्रशासनिक और भौगोलिक सीमाओं की उपस्थिति के कारण विभिन्न स्थानों पर भिन्न परिस्थितियों का सृजन होता है जिनके कारण विश्वीय कर्म संभव नहीं हो सकता. इसलिए कर्म स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप स्थानीय स्तर पर ही संभव होता है. केवल दृष्टिकोण ही विश्वीय हो सकता है जिसे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार स्थानीय कर्म में परिणित किया जाता है. .  


स्थानीय दृष्टिकोण से सीमित स्थानीय कर्म होने से स्थानीय विकास स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहता है जिसका लाभ अन्य स्थानों को प्राप्त नहीं हो पाता. विश्वीय दृष्टिकोण अपनाए जाने से दूसरे स्थानों के विकास का ही लाभ नहीं उठाया जाता, स्थानीय विकास का लाभ भी सुदूर स्थानों को प्राप्त होता है. इस प्रकार विश्वीय दृष्टिकोण विकास प्रक्रिया को विश्व स्तर तक विस्तृत करता है. 
Globalisation Fractures


उपरोक्त के अतिरिक्त, विश्वीय दृष्टिकोण से संपन्न स्थानीय कर्म केवल कर्म-स्थल हेतु ही उपयुक्त नहीं होता अपितु उसी प्रकार के अन्य स्थलों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होता है. उदाहरणार्थ, विश्वीय दृष्टिकोण के साथ एक छोटे से गाँव में किया गया कर्म उस प्रकार के अन्य गाँवों में भी विकास के लहर का सृजन करता है. इस लहर के सृजन का कारण यह है कि दृष्टिकोण को स्थानीय पारिस्थितिकी हेतु अनुकूलित कर लिया गया होता है जिसे उसी पारिस्थितिकी के अन्य स्थानों पर भी सरलता से लागू किया जा सकता है.