मनोवैज्ञानिक शोधों से पाया गया है कि ज्यों-ज्यों व्यक्ति की आयु वृद्धित होती जाती है वह भावुक रूप में अधिकाधिक स्थिर और प्रसन्नचित्त रहने लगता है. इसके पीछे वह सिद्धांत है जिसे मैं 'सामाजिक-भावुकता का अर्थशास्त्र' कहना चाहूँगा. इसके अनुसार आयु में वृद्धि के साथ व्यक्ति को बोध होने लगता है कि अब उसके पास व्यर्थ करने योग्य पर्याप्त समय नहीं है. व्यक्ति अपनी सामान्य बुद्धि के आधार पर उसके पास जिस वस्तु का अभाव होता है, वह उसका अधिकाधिक सदुपयोग करता है. इस कारण से व्यक्ति वृद्धावस्था में समय का अधिकाधिक सदुपयोग करने के प्रयास करने लगता है. इस सदुपयोग में वह अधिकाधिक प्रसन्न रहने के प्रयास करता है, व्यर्थ की चिंताओं से दूर रहने लगता है, और समाज में सौहार्द स्थापित करना अपना धर्म समझने लगता है. जिसे कहा जा सकता है कि वह समाज के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है.
जनसंख्यात्मक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि जन्म और मृत्यु दरों में कमी आने के कारण आगामी समय में विश्व में वृद्धों की संख्या बच्चों की संख्या से अधिक होगी. यहाँ तक कि कुछ लोगों का मत है कि ऐसे समय में वृद्धों की देखभाल करने के लिए युवाओं की संख्या भी पर्याप्त नहीं होगी. यह भय सच नहीं है क्योंकि वृद्धों की संख्या अधिक होने से मानव समाज भावुकता स्तर पर अधिक स्थिर, प्रसन्न और सामाजिक दायित्वों के प्रति अधिक संवेदनशील होगा.
विश्लेषण के लिए हम तीन क्षेत्रों की वर्तमान जनसँख्या के आंकड़ों पर दृष्टिपात करते हैं -
संयुक्त राज्य अमेरिका -
स्त्री : (आशान्वित आयु - ८०.८ वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - १९.६%,
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६६.२%,
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - १४.३%,
पुरुष : (आशान्वित आयु - ७५.० वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - २१.२%
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६८.२%
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - १०.३%
स्त्री : (आशान्वित आयु - ८१.६ वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - १५.३ %,
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६५.३ %,
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - १९.४ %,
पुरुष : (आशान्वित आयु - ७५.१ वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - १६.८ %
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६९.१ %
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - पुरुष १४.१ %
भारत -
स्त्री : (आशान्वित आयु - ६५.६ वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - ३०.९ %,
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६४.१ %,
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - ५.० %,
पुरुष : (आशान्वित आयु - ६३.९ वर्ष)
० से १४ वर्ष आयु समूह - ३३.७ %
१४ से ६५ वर्ष आयु समूह - ६४.४ %
६५ वर्ष से अधिक आयु समूह - ४.८ %
- यूरोप में वृद्धों की संख्या बच्चों की संख्या से अभी भी अधिक है जो इस तथ्य का प्रमाण है कि वहां लोग अधिक स्वस्थ और दीर्घजीवी हैं. इसका अर्थ यह भी है कि वृद्धों की संख्या की अधिकता का जन स्वास्थ पर अनुकूल प्रभाव होता है.
- भारत में वृद्धों की संख्या बच्चों की संख्या से बहुत कम है जिससे जन-स्वास्थ की बुरी स्थिति का आभास मिलता है.
अतः हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि भारत जैसे देशों में वृद्धों की अधिकता से जन-स्वास्थ पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और इससे कोई समस्या उठ खडी होने की संभावना नहीं है. वृद्धों के भावुक स्तर पर अधिक स्थिर होने का यही अर्थशास्त्र है. इसके विपरीत किशोरों और युवाओं में अवसाद, चिंताएं, व्यग्रता और निराशा जैसे ऋणात्मक भावों की अधिकता से सामाजिक भावुकता के अर्थशास्त्र पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है. अतः जहां तक वयता का प्रश्न है भावी मानव समाज अधिक साधन-संपन्न, विनम्र और बुद्धिमान सिद्ध होगा.